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________________ २४ . निशीथ सूत्र सौंपता है या देता है अथवा सौंपते हुए या देते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। ६. जो भिक्षु काष्ठ दण्ड युक्त पादपोंछन का परिभोग, उपभोग या उपयोग करता है अथवा परिभोग, उपभोग या उपयोग करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। . जो भिक्षु काष्ठ दण्ड युक्त पादपोंछन को डेढ मास से अधिक धारण करता है या. धारण करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। ८. जो भिक्षु काष्ठ दण्ड युक्त पादपोंछन को आतप या धूप में सुखाने हेतु रखता है या रखते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - कहीं-कहीं पादपोंछन को रजोहरण बतला दिया गया है, किन्तु वास्तव में रजोहरण तथा पादपोंछन भिन्न-भिन्न है। रजोहरण औपधिक उपकरण है। साधु उसे उपधि के रूप में सदैव अपने साथ रखता है। उसके बिना थोड़ी दूर भी चलना निषिद्ध है, क्योंकि सूक्ष्म जीवों की हिंसा से बचने के लिए चलते समय भूमि का जहाँ अपेक्षित हो, प्रमार्जन करना आवश्यक होता है। पादपोंछन का उपयोग पैरों को पौंछने के लिए होता है। वह यथापेक्षित रखा जाता है, प्रयोग में लिया जाता है। ऐसी परम्परा है - रजोहरण का दण्ड वस्त्रावृत्त होता है तथा पादपोंछन के दण्ड पर कपड़ा नहीं लपेटा जाता। रजोहरण ऊन के धागे की फलियों का होता है तथा पादपोंछन जीर्ण या फटे हुए पुराने कम्बल के एक हाथ लम्बे-चौड़े खण्डं का होता है। निशीथ चूर्णि में एवं प्राचीन परम्परा (धारणा) से "पायपुंछण' शब्द का अर्थ रजोहरण किया जाता है। "रजोहरण या पादपोंछन" दोनों अर्थों में से जो अर्थ आगमकारों को मान्य हो, वह अर्थ यहाँ पर समझना चाहिए। सूत्रों का आशयं भावार्थ से स्पष्ट है। अचित्त पदार्थ स्थित गंध को सूंघने का प्रायश्चित्त जे भिक्खू अचित्तपइट्ठियं गंधं जिग्घइ वा जिग्घेतं वा साइजइ॥९॥ कठिन शब्दार्थ - अचित्तपइट्ठियं - अचित्त प्रतिष्ठित - अचित्त पदार्थ में स्थित। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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