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________________ प्रथम उद्देशक - प्रातिहारिक वस्तु के अनिर्दिष्ट उपयोग का प्रायश्चित्त ११ जे भिक्खू पाडिहारियं पिप्पलयं जाइत्ता वत्थं छिंदिस्सामित्ति पायं छिंदइ छिंदंतं वा साइजइ॥ २८॥ जे भिक्खू पाडिहारियं णहच्छेयणयं जाइत्ता णहं छिंदिस्सामित्ति सल्लुद्धरणं करेइ करेंतं वा साइज्जइ॥ २९॥ जे भिक्खू पाडिहारियं कण्णसोहणयं जाइत्ता कण्णमलं णीहरिस्सामित्ति दंतमलं वा णखमलं वा णीहरेइ णीहरेंतं वा साइजइ॥ ३०॥ कठिन शब्दार्थ - पाडिहारियं - प्रातिहारिक - प्रत्यर्पणीय या वापस लौटाने योग्य, जाइत्ता - याचित कर, वत्थं - वस्त्र, सिव्विस्सामि - सीऊंगा, पायं - पात्र - पात्र को उठाने वाली झोली, सिव्वइ - सीता है - सिलाई करता है, छिंदिस्सामि - काटूंगा, छिंदइकाटता है, णहं - नख, सल्लुद्धरणं - शल्योद्धरण - कांटा निकालना, कण्णमलं - कान का मैल - कीटी, णीहरस्सामि - निकालूंगा, दंतमलं - दांत का मैल, णखमलं - नख का मैल, णीहरेइ - निकालता है। भावार्थ - २७. "वस्त्र - पछेवड़ी, चोलपट्ट आदि की सिलाई करूंगा" यों कहता हुआ जो साधु प्रातिहारिक (लौटाने योग्य) सूई की याचना कर उस द्वारा पात्र - पात्र की झोली की सिलाई करता है या सिलाई करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है। २८. "वस्त्र काढूंगा" यों कहता हुआ जो साधु प्रातिहारिक कतरणी की याचना कर उस द्वारा पात्र की झोली को काटता है या काटते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है। २९. "नख काढूंगा" यों कहता हुआ जो साधु नखछेदनक की याचना कर उस द्वारा कांटा निकालता है या कांटा निकालते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है। .. ३०. "कान का मैल निकालूंगा" यों कहता हुआ जो साधु कर्णशोधनक की याचना कर उस द्वारा दांत का या नख का मैल निकालता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है। - विवेचन - 'प्रति' उपसर्ग और 'ह' धातु के योग से प्रतिहार शब्द बनता है। "प्रतिहियते- प्रत्यर्यते इति प्रतिहारः" किसी वस्तु को वापस लौटाना प्रतिहार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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