SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 433
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०० निशीथ सूत्र . विवेचन - कालिकश्रुत के लिए दिन तथा रात का पहला और दोनों का ही आखिरी पहर स्वाध्याय काल है। दूसरा एवं तीसरा पहर उत्काल माना गया है। उत्काल में कालिक श्रुत का अध्ययन अविहित है। किन्तु नव अध्ययन के कंठाग्रीकरण इत्यादि की अपेक्षा से प्रस्तुत प्रसंग में कतिपय आपवादिक मर्यादाओं का उल्लेख हुआ है। उनमें आचारांग आदि कालिकश्रुत के लिए तीन पृच्छाओं का और दृष्टिवाद के लिए सात पृच्छाओं का विधान है। ___ दृष्टिवाद में अत्यन्त सूक्ष्म, सूक्ष्मतर विषयों का भेद, प्रभेद, अंग आदि के रूप में विस्तृत वर्णन है। इसलिए वहाँ सात पृच्छाओं का विधान हुआ है, जिससे जिज्ञासित विषयों का समाधान प्राप्त करने में सुविधा रहे। पृच्छा का तात्पर्य पूछना अर्थात् प्रश्नोत्तर या जिज्ञासा - समाधान है। निशीथ भाष्य में पृच्छा का स्वरूप बतलाते हुए कहा है: "तीन श्लोकों से पृच्छा होती है, तीन पृच्छाओं में नौ श्लोक होते हैं। ये प्रत्येक कालिक सूत्र के लिए है। दृष्टिवाद में सात पृच्छाओं के अन्तर्गत इक्कीस श्लोक होते हैं।" ..भाष्य में निर्दिष्ट सीमा तक प्रश्नोत्तर करना संगत है। उससे अधिक पृच्छाएँ या प्रश्नोत्तर करना प्रायश्चित्त योग्य हैं। महामहोत्सवों के प्रसंग पर स्वाध्याय विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू चउसु महामहेसु सज्झायं करेइ करेंतं वा साइजइ, तंजहा१ इंदमहे २ खंदमहे ३ जक्खमहे ४ भूयमहे॥ ११॥ जे भिक्खू चउसु महापाडिवएसु सज्झायं करेइ करेंतं वा साइजइ, तंजहा - आसोयपाडिवए, कत्तियपाडिवए, सुगिम्हयपाडिवए, आसाडीपाडिवए॥१२॥ कठिन शब्दार्थ - सुगिम्हय - सुग्रीष्मिक - चैत्र शुक्ला पूर्णिमा के बाद आने वाली प्रतिपदा - वैशाख कृष्णा प्रतिपदा। भावार्थ - ११. जो भिक्षु इन्द्रमहोत्सव, स्कंदमहोत्सव, यक्षमहोत्सव एवं भूतमहोत्सव - इन चार महामहोत्सवों (विशाल उत्सवों) में स्वाध्याय करता है या स्वाध्याय करने वाले का अनुमोदन करता है। . तिहिं सिलोगेहिं एगा पुच्छा, तिहिं पुच्छाहिं णव सिलोगा भवंति एवं कालिकसुयस्य एगतरं। दिट्ठिवाए सत्तसु पुच्छासु एगवीसं सिलोगा भवंति। - भाष्य गाथा - ६०६१ . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy