SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५८ निशीथ सूत्र खूटी पर लटकाना या छींके पर रखना भी निषिद्ध है। आहार की गंध से चूहे आदि उसे विकृत कर सकते हैं। यदि वहाँ से गिर जाए तो आहार अशुचि या गंदा हो जाता है। सूक्ष्म जीव भी आहत-प्रतिहत हो सकते हैं। अहिंसक चर्या, आध्यात्मिक जीवन तथा व्यावहारिक दृष्टिकोण इत्यादि की अपेक्षा से यह विवेचन किया गया है। 'वेहासे - विहायसि' पद 'विहायस्' शब्द की सप्तमी एक वचन का रूप है, जिसका अर्थ आकाश में है। खूटी, छींका आदि पर रखे हुए पदार्थ अधर में लटकते रहते हैं। अत एव आधाराधेय संबंध के कारण इनके लिए 'वेहासे' शब्द का प्रयोग हुआ है। .. यदि असावधानी से, कदाचित् कोई खाद्य पदार्थ भूमि पर गिर जाए तो अशुचि न होने . की स्थिति में उसका प्रयोग किया जाना साधु के लिए निषिद्ध नहीं है। गृहस्थों के मध्य आहार करने का प्रायश्चित्त जे भिक्खू अण्णउत्थिएहिं वा गारथिएहिं वा सद्धिं भुंजइ भुंजतं वा . साइज्जइ॥ ३८॥ ... जे भिक्खू अण्णउत्थिएहिं वा गारथिएहिं वा सद्धिं आवेढिय परिवेढिय भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ॥ ३९॥ कठिन शब्दार्थ - आवेढिय परिवेढिय - आवेष्टित परिवेष्टित - घिर कर। ___ भावार्थ - ३८. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ अथवा समीप बैठ कर आहार करता है या आहार करते हुए का अनुमोदन करता है। - ३९. जो भिक्षु अन्यतीर्थिकों या गृहस्थों के मध्य (चतुर्दिक) घिरा हुआ आहार करता है अथवा आहार करते हुए का अनुमोदन करता है। ___ ऐसा करने वाले भिक्षु को लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। _ विवेचन - भिक्षु की दिनचर्या संयमोपवर्धक विधाओं पर आश्रित है। गृहस्थों के साथ उसका इतना ही संबंध है कि आवश्यकतावश वह उनसे शुद्ध आहार प्राप्त करे, वस्त्र, पात्र आदि ग्रहण करे, उनको आध्यात्मिक प्रतिबोध दे, धर्मोपदेश दे। इसके अतिरिक्त गृहस्थों के । बीच रहना, उनसे अधिक सम्पर्क जोड़ना आदि निषिद्ध है। इस सूत्र में गृहस्थों के समीप बैठकर आहार लेना प्रायश्चित्त योग्य कहा गया है। यहाँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy