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________________ चतुर्दश उद्देशक - अनुपयोगी पात्र रखने एवं उपयोगी पात्र न रखने.... ३११ अनुपयोगी पात्र रखने एवं उपयोगी पात्र न रखने का प्रायश्चित्त जे भिक्खू पडिग्गहं अणलं अथिरं अधुवं अधारणिजं धरेइ धरेंतं वा साइज्जइ॥ ८॥ जे भिक्खू पडिग्गहं अलं थिरं धुवं धारणिजं ण धरेइ ण धरेंतं वा साइज्जइ॥ ९॥ कठिन शब्दार्थ - अणलं - अनलम् - कार्य के लिए अयथेष्ट - अयोग्य, अथिरं - अस्थिर - अदृढ - बेटिकाऊ, अधुवं - अध्रुव - अदीर्घकालभावी - लम्बे समय तक काम में न आने योग्य, अधारणिजं - अधारणीय - रखने के अयोग्य। भावार्थ - ८. जो भिक्षु उपयोग के लिए अयथेष्ट - अपर्याप्त, अदृढ़ लम्बे समय तक काम में न आने योग्य तथा न रखने योग्य पात्र को धारण करता है - रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है। ९. जो भिक्षु उपयोग के लिए यथेष्ट - पर्याप्त, सुदृढ़, लम्बे समय तक काम में आने योग्य और रखने योग्य पात्र को धारण नहीं करता है- नहीं रखता है अथवा नहीं रखने वाले का अनुमोदन करता है। . ऐसा करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। ___ विवेचन - भिक्षु का जीवन संकल्प निष्ठा, यथार्थवादिता, यथार्थ कारिता और तथ्यपरक प्रज्ञाशीलता पर टिका होता है। विवेक वर्जित भावुकता का उसमें कोई स्थान नहीं होता। इसी दृष्टि से यहाँ उपयोगी, अनुपयोगी पात्र को रखने, न रखने के संबंध में प्रायश्चित्त विषयक निरूपण हुआ है। भिक्षु के लिए कोई भी पात्र तभी तक रखे जाने योग्य होता है, जब तक वह भलीभाँति उपयोग में आ सके। उदाहरणार्थ पात्र टूट-फूट जाए, काम के लायक न रह पाए तो भिक्षु भावुकतावश यों सोचते हुए कि 'यह मेरे दीक्षा पर्याय स्वीकार करने के समय का पात्र है, एक यादगार है, स्मृति चिह्न है इसे क्यों न रखू' उसे रखता है तो वह प्रायश्चित्त का भागी होता है। इस तरह अन्य प्रकार की ममत्त्वपूर्ण आकांक्षाएँ, भावनाएं संभावित हैं, जो त्याज्य हैं। इसके विपरीत एक अन्य बात यह है - पात्र कार्य के लिए उपयोगी, दृढ़, टिकाऊ तथा लम्बे समय तक चलने योग्य, धारण करने योग्य है, किन्तु नवाभिनव पात्र लेने की उत्कण्ठा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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