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________________ २८८ निशीथ सूत्र भावार्थ - १३. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को क्रोधयुक्त वचन कहता है अथवा कहने वाले का अनुमोदन करता है। १४. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को कठोर वचन कहता है अथवा कहते हुए का अनुमोदन करता है। ..१५. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को क्रोधयुक्त कठोर वचन कहता है अथवा कहने वाले का अनुमोदन करता है। १६. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को अन्य किसी प्रकार की आशातंना से पीड़ा देता है - सताता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। .. ___ इस प्रकार उपर्युक्त अविहित कार्य करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - मानव के दैनंदिन व्यवहार में भाषा का बड़ा महत्त्व है। भिक्षु के लिए तो भाषा विषयक विशेष मर्यादाएँ पालनीय हैं, जिन्हें भाषासमिति के रूप में व्याख्यात किया गया है। तीन योगों में द्वितीय स्थान पर वचन योग है। जिस प्रकार मन से और शरीर से हिंसा करना, किसी को पीड़ित, उद्वेलित करना त्याज्य है, उसी प्रकार वचन के द्वारा भी वैसा करना परिहेय है। भिक्षु ऐसा वचन बोले जिससे सुनने वाले के मन में शान्ति उत्पन्न हो। इतर संप्रदायानुयायी भिक्षु या गृहस्थ आदि के प्रति उसे कभी अवहेलनापूर्ण और रोषयुक्त वचन नहीं बोलना चाहिए। यह जानकर कि यह विपरीत मार्ग का अनुसरण कर रहा है, उसे पीड़ा नहीं देनी चाहिए। कहा गया हैं - चरित है मूल्य जीवन का, वचन प्रतिबिम्ब है मन का। सुयश है आयु सज्जन की, सुजनता है प्रभा धन की॥ वाणी मन के भावों का प्रतिनिधित्व करती है। कठोर वाणी के मूल में असहिष्णुता, कोपाविष्टता आदि कषायात्मक भाव रहते हैं, अत एव वैसा वचन बोलना साधु के लिए प्रायश्चित्त योग्य है। मंत्र-तंत्र-विद्यादि विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारस्थियाण वा कोउगकम्मं करेइ करेंतं वा साइजइ॥ १७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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