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________________ २८४ निशीथ सूत्र जीवप्रतिष्ठित - जीवयुक्त, सहरिए - अंकुरित बीज युक्त, सओस्से - ओस युक्त, सउदए - सचित्त जलयुक्त काष्ठ आदि, सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टियमक्कडा-संताणगंसि - कीट विशेष, पनक जीव, कीचड़ युक्त मृत्तिका, सचित्त मृत्तिका, मकड़ी का जाला। भावार्थ - १. जो भिक्षु असंख्यात जीव युक्त - सचित्त पृथ्वी के निकट की भूमि पर (जानता हुआ भी) खड़े रहना, सोना, बैठना आदि क्रियाएँ करता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है। ____२. जो भिक्षु सचित्त जल युक्त पृथ्वी पर (जानता हुआ भी) खड़े रहना, सोना, बैठना . आदि क्रियाएँ करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ३. जो भिक्षु सचित्त रजयुक्त पृथ्वी पर (जानता हुआ भी) खड़े रहना, सोना, बैठना आदि क्रियाएँ करता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है। ____४. जो भिक्षु सचित्त मिट्टी के लेप युक्त स्थान पर (जानता हुआ भी) खड़े रहना, सोना, बैठना आदि क्रियाएं करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ५. जो भिक्षु सूक्ष्म त्रसजीवयुक्त पृथ्वी पर (जानता हुआ भी) खड़े रहना, सोना, बैठना आदि क्रियाएँ करता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है। ६. जो भिक्षु सूक्ष्म त्रसजीवयुक्त पाषाण खण्ड पर (जानता हुआ भी) खड़े रहना, सोना, बैठना आदि क्रियाएँ करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ७. जो भिक्षु सूक्ष्म त्रसजीवयुक्त मिट्टी के ढेले पर (जानता हुआ भी) खड़े रहना, सोना, बैठना आदि क्रियाएं करता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है। ८. जो भिक्षु घुणों के आवास युक्त, जीव, अण्डे, द्वीन्द्रिय जीव आदि युक्त काष्ठ अथवा सचित्त बीज, अंकुरित बीज, ओस, सचित्त जल, कीट विशेष, पनक जीव, कीचड़, सचित्त मृत्तिका या मकड़ी के जालों से युक्त स्थान में (जानता हुआ भी) खड़े रहना, सोना, बैठना आदि क्रियाएं करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। इस प्रकार उपर्युक्त अविहित कार्य करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - जैन भिक्षु अपने अहिंसा महाव्रत के अन्तर्गत सभी प्रकार के स्थावर, त्रस जीवों की हिंसा का परित्याग करता है। अत एव वह ऐसा कोई कार्य नहीं करता जिससे किसी भी सजीव प्राणी को क्लेश पहुँचे। इसलिए वह उठने, बैठने, सोने आदि दैनंदिन क्रियाओं में यह ध्यान रखता है कि सचित्त मृत्तिका, कर्दम आदि का स्पर्श न हो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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