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________________ २८२ निशीथ सूत्र कठिन शब्दार्थ - महण्णवाओ - महार्णव - समुद्र के तुल्य, उहिट्ठाओ - कही गई, गणियाओ - परिगणित - गिनी गई, वंजियाओ - प्रकटित - प्रतिपादित, अंतो मासस्स - एक मास में, दुक्खुत्तो - दो बार, तिक्खुत्तो - तीन बार, उत्तरइ - पैरों से पार करता है, संतरइ - नाव आदि से पार करता है, सेवमाणे - सेवन करते हुए को, आवज्जइ - आता है। भावार्थ - ४३. जो भिक्षु समुद्र के सदृश कथित, परिगणित एवं प्रतिपादित इन पाँच महानदियों को एक मास में दो बार या तीन बार तैरकर या नाव आदि से पार करता है अथवा तैरने या पार करने वाले का अनुमोदन करता है, उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। ___ गंगा, यमुना, सरयू, ऐरावती और माही - ये पाँच महानदियाँ कही गई हैं। . इस प्रकार उपर्युक्त ४३ सूत्रों में किए गए किसी भी प्रायश्चित्त स्थान का, तंद्गत दोषों का सेवन करने वाले भिक्षु को अनुद्घातिक परिहार-तप रूप लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। इस प्रकार निशीथ अध्ययन (निशीथ सूत्र) में द्वादश उद्देशक परिसमाप्त हुआ। विवेचन - सामान्यतः भिक्षु भूमि पर ही पदयात्रा करता है। जलमार्ग से नहीं जाता, क्योंकि वैसा करने में अपकाय के जीवों की तथा अनेकविध त्रसकायिक जीवों की विराधना होती है। किन्तु यदि साधर्मिक सेवा आदि विशिष्ट कारणों से जहाँ जाना हो वहाँ यदि स्थल मार्ग से न पहुँचा जा सके, आगे कोई बड़ी नदी हो तो आगमों में मासकल्प विहार के नियमानुसार एक मास में एक बार नदी पार किया जाना शास्त्रविहित है। उसमें इतनी और सुविधा है, चातुर्मास के अतिरिक्त आठ महीनों में नौ बार तक बड़ी नदी को पार करना कहा गया है। -- यहाँ इतना और ज्ञातव्य है कि प्रथम मास में दो बार तथा शेष मासों में एक-एक बार पार उतरना कल्पनीय है। नदी और महानदी का अन्तर यह है कि नदियाँ वर्षभर बहती भी हैं और सूखती भी हैं, किन्तु जिन्हें महानदियाँ कहा गया है, वे अथाह जल राशि युक्त होती हैं, कभी सूखती नहीं। उनमें मत्स्य, कच्छप, मकर आदि अनेकानेक छोटे-बड़े जल-जीव होते हैं। . ___उत्सर्ग मार्गानुसार तो भिक्षु को जल का स्पर्श करना भी नहीं कल्पता किन्तु यहाँ किया गया विधान आपवादिक है। || इति निशीथ सूत्र का द्वादश उद्देशक समाप्त|| Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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