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________________ निशीथ सूत्र २७४ ............................................................. सेनाओं द्वारा किए जाते युद्ध (व्यूह सहित), कलहाणि - कलह स्थान, बोलाणि - परस्पर वैरानुबद्ध निम्नवचन प्रयोग के स्थान। भावार्थ - २७. जो भिक्षु काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पुस्तकर्म, लेप्यकर्म, दन्तकर्म, मणिकर्म, शैलकर्म या ग्रंथिम, वेष्टिम, पूरिम, संघातिम आदि विविध विधियों से बनी पुतलियों या आकार विशेषों अथवा पत्र-काष्ठ आदि पर उकेरे हुए चित्र आदि को नेत्रों से देखने की इच्छा से मन में निश्चय करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ___.२८. जो भिक्षु राष्ट्र विप्लव, बाह्य-आभ्यंतर उपद्रव, पारस्परिक अन्तर्कलह, वंशपरंपरागत वैर, घोर युद्ध, महासंग्राम, कलह या निम्न वचनप्रयोग के स्थानों में चक्षुदर्शन की भावना से मन में निश्चय करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ___इस प्रकार उपर्युक्त रूप में आचरण करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। . जे भिक्खू विरूवरूवेसु महुस्सवेसु इत्थीणि वा पुरिसाणि वा थेराणि वा मज्झिमाणि वा डहराणि वा अणलंकियाणि वा सुअलंकियाणि वा गायंताणि वा वायंताणि वा णच्चंताणि वा हंसंताणि वा रमंताणि वा मोहंताणि वा विउलं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परिभायंताणि वा परिभुंजंताणि वा चक्खदंसणपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ॥ २९॥ . जे भिक्खू इहलोइएसु वा रूवेसु परलोइएसु वा रूवेसु दिढेसु वा रूवेसु अदिढेसु वा रूवेसु सुएसु वा रूवेसु असुएसु वा रूवेसु विण्णाएसु वा रूवेसु अविण्णाएसु वा रूवेसु सज्जइ रज्जइ गिज्झइ अज्झोववज्जइ सज्जंतं रजतं गिज्झंतं अज्झोववजंतं वा साइजई॥३०॥ कठिन शब्दार्थ - विरूवरूवेसु - अनेक प्रकार के, महुस्सवेसु - महोत्सवों में, थेराणि - वृद्धजन, मज्झिमाणि - मध्यम - अधेड़ उम्र के लोग, डहराणि - अल्पवयस्कबच्चे के, अणलंकियाणि - अलंकार रहित, सुअलंकियाणि - अलंकार सहित, गायंताणिगाते हुए, वायंताणि - बजाते हुए, णच्चंताणि - नाचते हुए, रमंताणि - अनेक प्रकार की क्रीड़ा करते हुए (रमण करते हुए), मोहंताणि - मोहकता पैदा करते हुए, इहलोइएसु - इस लोक में, परलोइएसु - परलोक में, रूवेसु - रूप आदि में, दिढेसु - दृष्ट पदाथों में, अदिढेसु - अदृष्ट देवादि में, सुएसु - श्रुत - श्रवण आदि में, असुएसु - न सुने हुए, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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