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________________ द्वादश उद्देशक - सचित्त वृक्ष पर चढ़ने का प्रायश्चित्त सचित्त वृक्ष पर चढने का प्रायश्चित्त ९ ॥ - चढता है। जे भिक्खू सचित्तरुक्खं दुरूहइ दुरूहंतं वा साइज्जइ ॥ कठिन शब्दार्थ - रुक्खं वृक्ष, दुरूहइ - दुरारोहण करता है भावार्थ ९. जो भिक्षु सचित्त वृक्ष पर दुरारोहण करता है चढने का दुस्साहस करता है या दुरारोहण करने वाले का अनुमोदन करता है, उसे लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। - - - विवेचन - यहाँ प्रयुक्त 'दुरूहइ' 'दुरोहति' क्रिया पद 'दुर्' उपसर्ग तथा 'रूह' धातु के योग से बना है जिसका अर्थ चढने का दुष्प्रयास या दुस्साहस करना है । चढने के अर्थ में 'दुरोहति' का प्रयोग साधु द्वारा किए जाने वाले अवांछित, अनुचित उपक्रम का द्योतक है क्योंकि सचित्त पदार्थ का संस्पर्श ही जब उसके लिए दोषपूर्ण है फिर सचित्त वृक्ष पर चढना तो उसके स्कंध (तना) शाखा, पत्र, पुष्प आदि सभी के लिए कष्टप्रद है, विराधनाजनक है। कोई साधु वृक्ष पर चढे यह प्रसंग बने ही कैसे ? Jain Education International अतिवृष्टि, बाढ, चोर, दस्यु, अनार्यजन या सिंह, व्याघ्र, शूकरादि हिंसक पशुओं के भय से आशंकित होने पर संयमोपवर्धक देह या प्राणों की रक्षा हेतु साधु के लिए मजबूरी में वृक्ष पर चढना आवश्यक हो जाता है, फिर भी एक मात्र त्याग और संयम के वाहक साधु के लिए यह प्रायश्चित्त तो आता ही है । पुनः पुनः वैसा दुष्प्रयास करने पर या कुतूहलवश चढने पर यह प्रायश्चित्त और अधिक हो जाता है। २६३ जैन सिद्धान्त और तत्प्रसूत क्रियाकलाप कितनी सूक्ष्मता और गहराई तक पहुँचते हैं, पूर्वोक्त वर्णनों से स्पष्ट है । सामान्यतः ऐसा होता नहीं, सोचा भी नहीं जा सकता किन्तु आशंकित तो है ही। क्योंकि साधु वनों, दुर्गम स्थानों में होता हुआ विहार करता है जहाँ जनसंकुल नहीं होते, बियावान होते हैं। शास्त्रों में तीन प्रकार के सचित्त वृक्ष कहे गए हैं १. संख्यात जीवयुक्त - ताड़ वृक्षादि । २. असंख्यात जीवयुक्त - आम्रवृक्ष आदि । ३. अनंत जीवयुक्त - स्नुही (थोर) आदि । वृक्ष पर चढने से और भी दोष या संकटापन्न स्थितियाँ आशंकित हैं. १. देह के खरौंच आना । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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