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________________ एकादश उद्देशक - निषिद्ध पात्र निर्माण-धारण-परिभोग..... २३३ ३. जो भिक्षु लोहा, ताम्बा, रांगा, शीशा, कांसी, चाँदी, स्वर्ण, जातरूप, मणि, कनक, दाँत, सींग, चर्म, वस्त्र, पत्थर, स्फटिक, शंख या हीरा - इनसे निर्मित पात्रों का परिभोग या उपयोग करता है अथवा परिभोग करते हुए का अनुमोदन करता है। ४. जो भिक्षु पात्र पर लोहा, ताम्बा, रांगा, शीशा, कांसी, चाँदी, स्वर्ण, जातरूप, मणि, कनक, दाँत, सींग, चर्म, वस्त्र, पत्थर, स्फटिक, शंख या हीरा - इनके बंधन लगाता है अथवा बंधन लगाते हुए का अनुमोदन करता है। ५. जो भिक्षु लोहा, ताम्बा, रांगा, शीशा, कांसी, चाँदी, स्वर्ण, जातरूप, मणि, कनक, दाँत, सींग, चर्म, वस्त्र, पत्थर, स्फटिक, शंख या हीरा - इनके बंधनों से युक्त पात्र धारण करता है - रखता है अथवा धारण करते हुए का अनुमोदन करता है। ६. जो भिक्षु लोहा, ताम्बा, रांगा, शीशा, कांसी, चाँदी, स्वर्ण, जातरूप, मणि, कनक, दाँत, सींग, चर्म, वस्त्र, पत्थर, स्फटिक, शंख या हीरा - इनके बंधनों से युक्त पात्र का परिभोग या उपयोग करता है अथवा परिभोग करते हुए का अनुमोदन करता है। ___ इन सूत्रों में वर्णित दोष-स्थानों में से किसी भी दोष-स्थान का सेवन करने वाले भिक्षु को गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - भिक्षु. के पाँच महाव्रतों में अन्तिम अपरिग्रह है। अपरिग्रह का तात्पर्य शास्त्रानुमोदित सीमित अतिसाधारण अल्प मूल्य युक्त वस्त्र, पात्र आदि शारीरिक निर्वाह के लिए अनिवार्य उपकरणों के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकार का साम्पतिक संग्रह न करना, न रखना है। पात्र, वस्त्र आदि भी बहुमूल्य, चमकीले, भड़कीले नहीं होने चाहिए, क्योंकि वैसा होना विलासिता का रूप है। इन सूत्रों में उन पात्रों की चर्चा है, जो भिक्षु के लिए बहुमूल्यता, भारवत्ता, सौन्दर्य प्रदर्शनवत्ता आदि के कारण अनिर्मेय, अग्राह्य एवं अप्रयोज्य हैं। बहुमूल्य पात्रों को रखने में चोर, दस्यु आदि का भी भय रहता है, जिससे संकट उत्पन्न हो सकते हैं। आचारांग सूत्र तथा स्थानांग सूत्र के अनुसार भिक्षुओं के लिए केवल तीन ही प्रकार के - तुम्बे, काठ और मिट्टी से निर्मित पात्रों को ही लेने एवं धारण करने का विधान है। - आचारांग सूत्र - २.६.१ • स्थानांग सूत्र - तृतीय स्थान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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