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________________ [25] पृष्ठ २३६ २३६ २३७ मायश्चित्त २३८ २३९ २४० २४१ . . २४२ २४२ २४३ २४५ क्रं० विषय १६३. अधर्म की प्रशंसा करने का प्रायश्चित्त १६४. अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पाद आमर्जनादि विषयक प्रायश्चित्त १६५. स्व-पर विभीतिकरण विषयक प्रायश्चित्त १६६. स्व-पर विस्मापन विषयक प्रायश्चित्त १६७. . स्व-पर-विपर्यासकरण - प्रायश्चित्त १६८. परमत प्रशंसन विषयक प्रायश्चित्त १६९. विरोध युक्त राज्य में गमनागमन विषयक प्रायश्चित्त १७०. दिवाभोजन निंदा एवं रात्रिभोजन प्रशंसा विषयक प्रायश्चित्त १७१. चर्या विपरीत भोजन विषयक प्रायश्चित्त १७२. अनागाढ स्थिति में रात्रि में आहार रखने आदि का प्रायश्चित्त १७३. आहारलिप्सा से अन्यत्र रात्रिप्रवास विषयक प्रायश्चित्त १७४. देवादि नैवेद्य सेवन विषयक प्रायश्चित्त .१७५. स्वेच्छाचारी की प्रशंसा एवं वन्दना का प्रायश्चित्त १७६. अयोग्य प्रव्रज्या विषयक प्रायश्चित्त १७७. अयोग्य से वैयावृत्य कराने का प्रायश्चित्त १७८. साधु-साध्वियों के एकत्र संवास विषयक प्रायश्चित्त १७९. रात में रखे पीपल आदि के सेवन का प्रायश्चित्त १८०. बाल मरण प्रशंसा विषयक प्रायश्चित्त बारसमो उद्देशक - द्वादश उद्देसओ १८१. त्रस-प्राणी-बंधन-विमोचन विषयक प्रायश्चित्त १८२. प्रत्याख्यान भंग करने का प्रायश्चित्त १८३. प्रत्येक काययुक्त-आहार सेवन विषयक प्रायश्चित्त १८४. रोमयुक्त चर्म रखने का प्रायश्चित्त १८५. गृहस्थ के वस्त्र से ढके पीढे पर बैठने का प्रायश्चित्त १८६. स्थावरकाय हिंसा विषयक प्रायश्चित्त १८७. सचित्त वृक्ष पर चढने का प्रायश्चित्त . २४६ २४७ २४८ २४९ २५० २५१ २५२ રદ-ર૮ર २५६ २५८ २५८ २५९ २६० २६१ २६३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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