SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशम उद्देशक - पर्युषण विषयक प्रायश्चित्त २२५ वर्षावास में भिक्षु को एक ही स्थान पर रहना कल्पता है। वह उसमें विहार नहीं करता। चातुर्मास के अनन्तर मासकल्प के नियमानुसार वह विहरणशील होता है। इन सूत्रों के अनुसार वर्षाकाल के पूर्व भाग और उत्तरभाग दोनों में ही विहार करना . निषिद्ध है, प्रायश्चित्त योग्य है। वर्षावास के चार मास में एक ही स्थान पर प्रवास करने की परंपरा सदा से प्रचलित है। बिना किसी अति अनिवार्य हेतु के वह अखण्डनीय है। भिक्षु इस परंपरा का अनुसरण करते ही हैं। इसमें कोई विच्छेद न आ पाए इस दृष्टि से जागरूक करने हेतु इन सूत्रों में वर्षावास के अन्तर्गत विहार करना प्रायश्चित्त योग्य बतलाया गया है। पर्युषण विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू अपज्जोसवणाए पज्जोसवेइ पजोसवेंतं वा साइजइ॥ ४२॥ जे भिक्खू पजोसवणाए ण पजोसवेइ ण पज्जोसवेंतं वा साइज्जइ॥४३॥ कठिन शब्दार्थ - अपजोसवणाए - अपर्युषण काल में, पजोसवेइ - पर्युषण करता है। भावार्थ - ४२. जो भिक्षु अपर्युषणकाल में - पर्युषण के लिए अनिर्धारित, अनियत काल में पर्युषण करता है या पर्युषण करते हुए का अनुमोदन करता है। - ४३. जो भिक्षु पर्युषण के नियत काल में पर्युषण नहीं करता या पर्युषण न करते हुए का अनुमोदन करता है। .. ऐसा करने वाले भिक्षु को गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - पहले व्याख्यात हो चुका है कि प्रावृट्काल एवं वर्षावास में भिक्षु श्रावण से लेकर कार्तिक पर्यन्त चार महीने एक ही स्थान में प्रवास करता है। तत्पश्चात् मासकल्प के नियमानुसार उसका विहरण होता है। . चातुर्मासिक प्रतिक्रमण के अनंतर एक मास और बीस दिन (पच्चासवें दिन)पयुर्षणकालसांवत्सरिक पर्व नियत है। निशीथ चूर्णि की गाथा सं.-३१५२-५३ की व्याख्या में एक मास बीस दिन का इस संदर्भ में उल्लेख हआ है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy