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________________ २१४ निशीथ सूत्र जे भिक्खू अणुग्घाइयं सोच्चा णच्चा संभुंजइ संभुंजंतं वा साइजइ॥ २३॥ जे भिक्खूअणुग्घाइयहेउं सोच्चा णच्चा संभुंजइ संभुंजंतं वा साइजइ॥२४॥ जे भिक्खू अणुग्घाइयसंकप्पं सोच्चा णच्चा संभुंजइ सं जंतं वा साइज्जइ॥२५॥ जे भिक्खू अणुग्घाइयं अणुग्घाइयहेडं वा अणुग्घाइयसंकप्पं वा सोच्चा णच्चा संभुंजइ सं जंतं वा साइजइ॥ २६॥ जे भिक्खू उग्घाइयं वा अणुग्धाइयं वा सोच्चा णच्चा संभुंजइ संभुंजतं वा साइजइ॥ २७॥ . जे भिक्खू उग्धाइयहेउं वा अणुग्धाइयहेउं वा सोच्चा णच्चा संभुंजइ संभुंजतं वा साइजइ॥ २८॥ - जे भिक्खू उग्घाइयसंकप्पं वा अणुग्घाइयसंकप्पं वा सोच्चा णच्चा संभुंजइ संभुंजंतं वा साइज्जइ॥ २९॥ जे भिक्खू उग्धाइयं वा अणुग्धाइयं वा उग्घाइयहेउं वा अणुग्याइयहेउं उग्घाइयसंकप्पं वा अणुग्घाइयसंकप्पं वा सोच्चा णच्चा संभुंजइ संभुंजंतं वा साइजइ॥ ३०॥ कठिन शब्दार्थ - सोच्चा - सुनकर, णच्चा - जानकर, संभुंजइ - आहारादि का संभोग - व्यवहार रखता है, हेउं - हेतु, संकप्पं - संकल्प। भावार्थ - १९. जो भिक्षु किसी साधु के लघु प्रायश्चित्त आने के संबंध में सुनकर तथा जानकर भी उसके साथ आहारादि का व्यवहार रखता है अथवा रखते हुए. का अनुमोदन करता है। २०. जो भिक्षु किसी साधु के लघु प्रायश्चित्त के हेतु - कारण को सुनकर तथा जानकर भी उसके साथ आहारादि का व्यवहार रखता है अथवा रखते हुए का अनुमोदन करता है। ... २१. जो भिक्षु किसी साधु से संबद्ध लघु प्रायश्चित्त विषयक संकल्प को सुनकर तथा जानकर भी उसके साथ आहारादि का व्यवहार रखता है अथवा रखते हुए का अनुमोदन करता है। २२. जो भिक्षु किसी साधु के लघु प्रायश्चित्त, उसके हेतु या तत् संबद्ध संकल्प को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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