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________________ __ नवम उद्देशक - राजधानियों में गमनागमन विषयक प्रायश्चित्त १९५ गणित - गिनी जाती हुई - मानी जाती हुई, वंजियाओ - व्यंजित - नाम से अभिव्यक्त - प्रकट या प्रसिद्ध, अंतो मासस्स - अन्तर्मास - एक मास के भीतर, दुक्खुत्तो - दो बार, तिक्खुत्तो - तीन बार। __भावार्थ - २०. जो भिक्षु क्षत्रियकुलोत्पन्न, शुद्ध मातृ-पितृ वंशीय एवं मूर्धाभिषिक्त राजा की इन दस राज्याभिषेक योग्य राजधानियों के रूप में कही गई, गिनी गई, मानी गई नगरियों में एक मास में दो बार या तीन बार गमनागमन करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। - वे राजधानियाँ इस प्रकार हैं - १. चंपा, २. मथुरा, ३. वाराणसी, ४. श्रावस्ती, ५. साकेतपुर, ६. कांपिल्य नगर, ७. कौशांबी, ८. मिथिला, ९. हस्तिनापुर एवं १०. राजगृह। __ विवेचन - राजधानी राजा का मुख्य आवास होता है। वहाँ अनेक राजपुरुष एवं राज कर्मचारी रहते हैं, सेनापति, सेनाएँ, सामन्त, आरक्षीजन, गाथापति, उद्योगपति, श्रेष्ठी आदि निवास करते हैं। राजा द्वारा तथा राजधानीवासी अन्य उच्चपदासीन, संपत्तिशालीजनों द्वारा समय-समय पर उत्सव, भोज आदि आयोजित किए जाते हैं। संगीत, नृत्य, वाद्य-वादिंत्र आदि .. का जमघट बना रहता है। मार्गों में भीड़ तो इतनी अधिक होती है कि आवागमन करने वाले जन आपस में टकराते जाते हैं। ऐसे स्थानों में भिक्षु को अधिक बार गमनागमन नहीं करना चाहिए। ___ भौतिक वैभव एवं ऐश्वर्य से आपूर्ण समारोहों की आकर्षकता दुर्बलचेता पुरुष को मोह लेती है। इसलिए भिक्षु को एक बार से अधिक दो बार, तीन बार आदि नहीं जाना चाहिए, क्योंकि आकर्षक, मोहक एवं भोगप्रधान वातावरण कदाचित् मन में विकार भी उत्पन्न कर सकता है। ऐसे स्थान संयम के लिए बाधक, विघातक माने गए हैं। जहाँ जरा भी आध्यात्मिक हानि की आशंका हो, वैसे स्थान से भिक्षु को सदैव दूर रहना चाहिए। राजधानी एक वैसा ही स्थान है। इसलिए वहाँ विशेष आवश्यकतावश भिक्षु को राजधानी में जाना पड़े तो वह सामान्यतः महीने में एक बार से अधिक न जाए। बहुत आवश्यक हो तो दूसरी बार भी जा सकता है, उसमें प्रायश्चित्त नहीं आता, किन्तु तीसरी बार यदि जाए तो अवश्य ही प्रायश्चित्त आता है। - अधिक बार जाने का निषेध करने का तात्पर्य यह है कि उससे. लोगों के साथ अधिक निकटता बढ़ती है। उनके प्रति स्नेह या मोह, राग उत्पन्न होना आशंकित है, जो साधुत्व में प्रत्यवाय - विघ्न है। भिक्षु के बार-बार जाने-आने से राजपुरुषों के मन में उसके गुप्तचर या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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