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________________ निशीथ सूत्र तथा जहाँ पुरुष द्वारपाल हो वहाँ पुलिंगवाची 'जो तं एवं वदतं पडिसुणेइ' इस प्रकार दोनों पाठ शुद्ध हो सकते हैं । १८४ राजा आदि के द्वारपाल प्रभृति हेतु निष्पादित खाद्य सामग्री से आहार लेने का प्रायश्चित्त जे भिक्खु रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं दुवारियभत्तं वा पसुभत्तं वा भयगभत्तं वा बलभत्तं वा कयगभत्तं वा हयभत्तं वा गयभत्तं वा कंतारभत्तं वा दुब्भिक्खभत्तं वा दुक्कालभत्तं वा दमगभत्तं वा गिलाणभत्तं वा वद्दलियाभत्तं वा पाहुणभत्तं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गार्हतं वा साइज्जइ ॥ ६ ॥ कठिन शब्दार्थ - दुवारियभत्तं द्वारपालों के निमित्त बना भोजन, पसुभत्तं - पशुओं के लिए कृत आहार, भयगभत्तं भृत्यों के लिए बना भोजन, बलभत्तं - सैना के लिए बना. भोजन, कयगभत्तं - क्रीत खरीदकर आनीत (लाकर) दास-दासियों के निमित्त बनाया हुआ भोजन, हयभत्तं - अश्वों के निमित्त बना आहार, गयभत्तं - हाथियों के लिए निष्पादित आहार, कंतारभत्तं - कान्तारभक्त - जंगल के यात्रियों के लिए बना भोजन, दुब्भिक्खभत्तंदुर्भिक्षभक्त - दुर्भिक्ष- पीड़ितों के लिए बना भोजन, दुक्कालभत्तं - दुष्कालभक्त - दुष्कालपीड़ितों के लिए बना भोजन, दमगभत्तं द्रमकभक्त - दीनजनों हेतु बना भोजन, गिलाणभत्तंग्लानभक्त - ज्वरादि दीर्घ रोग पीड़ितजनों के लिए बना भोजन, वद्दलियाभत्तं - बर्दलिकाभक्तवर्षा पीड़ितों के लिए बना भोजन, पाहुणभत्तं - प्राधूर्णकभक्त - आगन्तुकों - अतिथियों के लिए संपादित भोजन । - भावार्थ - ६. जो भिक्षु क्षत्रियकुलोत्पन्न, शुद्ध मातृ-पितृ वंशीय एवं मूर्धाभिषिक्त राजा द्वारपालों, पशुओं, भृत्यों, सैनिकों, दास-दासियों, घोड़ों, हाथियों, जंगल के यात्रियों, दुर्भिक्षपीड़ितों, दुष्काल पीड़ितों, दीन-हीनों, दीर्घ रोग पीड़ितों, वर्षा पीड़ितों या आगन्तुकों - अतिथियों के निमित्त निष्पादित खाद्य सामग्री में से आहार ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - इस सूत्र में राजा की ओर से अपने सेवकों, कर्मचारियों, उपयोग हेतु पालित पशुओं आदि के निमित्त भोज्य सामग्री तैयार कराए जाने के साथ-साथ जंगल के यात्रियों, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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