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________________ सप्तम उद्देशक - किसी भी इन्द्रिय द्वारा विकारोत्पादक आकृति... १६५ किसी भी इन्द्रिय द्वारा विकारोत्पादक आकृति बनाने विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणेवडियाए अण्णयरेणं इंदिएणं आकारं करेइ करेंतं वा साइजइ। तं सेवमाणे आवजइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं॥ ९४॥. ॥णिसीहऽज्झयणे सत्तमो उद्देसो समत्तो॥७॥ कठिन शब्दार्थ - इंदिएणं - इन्द्रिय द्वारा, आकारं - आकार - कामुक संकेत। भावार्थ - ९४. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन का अभिप्राय लिए किसी भी इन्द्रिय द्वारा कोई (विकारोत्पादक) आकार - आकृति बनाता है, अंगों द्वारा कामुक संकेत देता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। ___इस प्रकार उपर्युक्त ९४ सूत्रों में किए गए किसी भी प्रायश्चित्त स्थान का, तद्गत दोषों का सेवन करने वाले भिक्षु को अनुद्घातिक परिहार तप रूप गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। - इस प्रकार निशीथ अध्ययन (निशीथ सूत्र) का सप्तम उद्देशक परिसमाप्त हुआ। .. विवेचन - यहाँ आकार शब्द स्त्री को कामप्रेरित करने की दुरभिलाषा से शरीर के अंगोपांगों से विविध प्रकार के संकेत करना है। निशीथ भाष्य में नेत्रों द्वारा इशारा करना, रोमांचित होना - शरीर के रोमों का खड़ा होना, देह को कंपित करना, स्वेद आना, अपनी दृष्टि - नजर और मुखाकृति को रागयुक्त करना, लम्बे सांस छोड़ते हुए बोलना, बार-बार बातें करना - मोहक या लुभावने वचन बोलना, बार-बार उबासी लेना - इन संकेतात्मक उपक्रमों का कामुक आकारों के रूप में आख्यान किया है। . वात्स्यायन ने भी कामसूत्र में इस प्रकार की कामुक चेष्टाओं को कामोत्तेजना तथा भोगोत्प्रेरणा के रूप में वर्णित किया है। ॥ इति निशीथ सूत्र का सप्तम उद्देशक समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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