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________________ सप्तम उद्देशक - सचित्त भूमि-सजीव स्थान पर बिठाने आदि का प्रायश्चित्त १५५ करते हुए आपस में एक दूसरे के मस्तक को ढांकता है या ढांकते वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।) ... विवेचन - इन सूत्रों में परस्पर पाद आदि के आमर्जन - प्रमार्जन तथा परिकर्म विषयक जो वर्णन हुआ है, वह पूर्ववत् कामोत्तेजना के परिणाम स्वरूप क्रीयमाण वासनामूलक प्रवृत्तियों का द्योतक है। पहले की तरह ये भी ऐसे कुत्सित कृत्य हैं, जिससे भिक्षु को मन-वचन-काय एवं कृत-कारित-अनुमोदित रूप में सर्वथा पृथक् रहना चाहिए। एतद्विषयक विस्तृत विवेचन पिछले सूत्रों (तृतीय उद्देशक) में यथा स्थान द्रष्टव्य है। सचित्त भूमि - सजीव स्थान पर बिठाने आदि का प्रायश्चित्त जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अणंतरहियाए पुढवीए णिसीयावेज . वा तुयट्टावेज वा णिसियावेंतं वा तुयट्टावेंतं वा साइजइ॥ ७०॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए ससिणिद्धाए पुढवीए णिसीयावेज वा तुयट्टावेज वा णिसीयावेतं वा तुयथावेंतं वा साइज्जइ॥७१॥ - जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए ससरक्खाए पुढवीए णिसीयावेज वा तुयट्टावेज वा णिसीयावेंतं वा तुयट्टावेंतं वा साइजइ॥७२॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए मट्टियाकडाए पुढवीए णिसीयावेज वा तुयट्टावेज वा णिसीयावेंतं वा तुयट्टावेंतं वा साइजइ ॥७३॥ - जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए चित्तमंताए पुढवीए णिसीयावेज वा तुयट्टावेज वा णिसीयावेंतं वा तुयट्टावेंतं वा साइज्जइ ॥ ७४॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए चित्तमंताए सिलाए णिसीयावेज वा तुयट्टावेज वा णिसीयावेंतं वा तुयट्टावेंतं वा साइज्जइ॥ ७५॥ . जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए चित्तमंताए लेलूए णिसीयावेज वा तुयट्टावेज वा णिसीयावेंतं वा तुयट्टावेंतं वा साइजइ॥ ७६॥ . जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए कोलावासंसि वा दारुए · जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सओसे सउदए सउत्तिंगपणग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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