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________________ १४४ निशीथ सूत्र ऐसा करने वाले भिक्षु को गुरु चौमासी प्रायश्चित्त-आता है। कामुकतावश स्व-पाव-आमर्जनादि का प्रायश्चित्त जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो पाए आमज्जेज वा पमज्जेज्ज वा आमजंतं वा पमज्जंतं वा साइजइ। एवं तइय उद्देसगगंमेण णेयव्वं जाव जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए गामाणुगामं दूइजमाणे अप्पणो सीसवारियं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ॥ २४-७९॥ भावार्थ - २४. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से अपने पैरों का एक बार या अनेक बार घर्षण करता है या घर्षण करने वाले का अनुमोदन करता है, इस प्रकार तीसरे उद्देशक के सूत्र १६ से ७१ तक के आलापक के. समान यहाँ जान लेना चाहिए यावत् जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से ग्रामानुग्राम विहार करते हुए अपना मस्तक ढंकता है या ढंकने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरुचौमासीक प्रायश्चित्त आता है।) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए खीरं वा दहिं वा णवणीयं वा सप्पिं वा गुलं वा खंडं वा सक्करं वा मच्छंडियं वा अण्णयरं वा पणीयं आहारं आहारेइ आहारेंतं वा साइजइ। तं सेवमाणे आवजइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं।। ८०॥ . ॥णिसीहऽज्झयणे छट्ठो उद्देसो समत्तो॥६॥ ___ कठिन शब्दार्थ - खीरं - क्षीर - दूध, सप्पिं - घी, गुलं - गुड़, मच्छंडियं - मिश्री, पणीयं - प्रणीत - पौष्टिक। भावार्थ - ८०. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के भाव से दूध, दही, नवनीत - मक्खन, घी, गुड़, खांड, शक्कर, मिश्री या अन्य सरस (प्रणीत) आहार लेता है अथवा लेते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। इस प्रकार उपर्युक्त ८० सूत्रों में किए गए किसी भी प्रायश्चित्त स्थान के सेवन करने वाले भिक्षु को अनुद्घातिक परिहार-तप रूप गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। . इस प्रकार निशीथ अध्ययन (निशीथ सूत्र) में षष्ठ उद्देशक परिसमाप्त हुआ। विवेचन - उपर्युक्त सूत्रों में प्रयुक्त "माउग्गाम" का संस्कृत रूप "मातृग्राम" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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