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________________ ११८ निशीथ सूत्र भावार्थ - १३. जो भिक्षु अपनी चद्दर के छोटे-छोटे लटकते हुए धागों को अन्य धागे बांधकर लंबे करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - यदि भिक्षु की चद्दर लम्बाई-चौड़ाई में कुछ छोटी पड़ती हो, जिससे उसका प्रावरण के रूप में समुचित उपयोग करने में कठिनाई हो तो चद्दर के किनारों पर लटकते हुए छोटे-छोटे धागों को दूसरे धागे उनमें जोड़कर, बांधकर कुछ लम्बा करना आवश्यक होता है। नए जोड़े जाने के बाद लटकने वाले धागों की मर्यादा चार अंगुल परिमित मानी गई है। ___इस सूत्र में धागों को दीर्घ करने का जो प्रायश्चित्त बतलाया गया है, वह चार अंगुल से अधिक दीर्घ-लम्बा करने से संबंधित है। वैसा करने से अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जाती है। धागे आपस में उलझ सकते हैं। यथावत् प्रतिलेखन न किए जाने से. दोष लगता है, देखने में भी वे असमीचीन प्रतीत होते हैं, लोगों को भद्दे लगते हैं। धारणा (गुरु परम्परा) से दीर्घ सूत्र करने का अर्थ "अपनी चादर को प्रमाण से अधिक लम्बी चौड़ी करें" ऐसा भी किया जाता है। नीम आदि के पत्ते खाने का प्रायश्चित्त जे भिक्खू पिउमंदपलासयं वा पडोलपलासयं वा बिलपलासयं वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा संफाणिय संफाणिय आहारेइ आहारेंतं वा साइज्जइ॥१४॥ ___ कठिन शब्दार्थ - पिउमंदपलासयं - नीम के पत्ते, पडोलपलासयं - परवल के पत्ते, बिलपलासयं - बिल्व के पत्ते, संफाणिय-संफाणिय - संफानित कर - पानी में डुबो-डुबो कर - ‘स्वच्छ बनाकर, आहारेइ - आहार के रूप में सेवन करता है, खाता है। भावार्थ - १४. जो भिक्षु नीम, परवल या बिल्व के पत्तों को अचित्त शीतल या उष्ण जल में डुबा-डुबा कर - स्वच्छ कर आहार के रूप में खाता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। , - विवेचन - आहार के रूप में वृक्षों के पत्तों को अचित्त शीतल या उष्ण जल में धोकर, स्वच्छ कर खाना अनुचित है। धोए जाने के बाद जल को फेंकना होता है, जिसमें जीव-विराधना अशंकित है। पत्तों को स्वयं धोए, यह भी साधु के लिए अशोभनीय है, अव्यवहार्य है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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