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________________ तृतीय उद्देशक - शल्य-क्रिया का प्रायश्चित्त ६७ ३५. जो भिक्षु अपने शरीर में उत्पन्न गंडमाला, पैरों का फोड़ा, छोटी-छोटी फुन्सियाँ, बवासीर या भगन्दर - इनका किसी तीक्ष्ण औजार द्वारा आच्छेदन-विच्छेदन कर, उनसे एक बार या अनेक बार मवाद या खून निकाले, उन्हें विशोधित करे, विशेष रूप से स्वच्छ करे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। . ३६. जो भिक्षु अपने शरीर में उत्पन्न गंडमाला, पैरों का फोड़ा, छोटी-छोटी फुन्सियाँ, बवासीर या भगन्दर - इनका किसी तीक्ष्ण औजार द्वारा आच्छेदन-विच्छेदन कर, उनसे मवाद या खून निकालकर, अचित्त शीतल या उष्ण जल द्वारा उन्हें एक बार या अनेक बार धोए अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। '. ३७. जो भिक्षु अपने शरीर में उत्पन्न गंडमाला, पैरों का फोड़ा, छोटी-छोटी फुन्सियाँ, बवासीर या भगन्दर - इनका किसी तीक्ष्ण औजार द्वारा आच्छेदन-विच्छेदन कर, उनसे मवाद या खून निकाल कर, विशोधित कर, धोकर, उन पर औषधि निर्मित लेप या मल्हम एक बार या अनेक बार लगाए अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। ३८. जो भिक्षु अपने शरीर में उत्पन्न गंडमाला, पैरों का फोड़ा, छोटी-छोटी फुन्सियाँ. 'बवासीर या भगन्दर - इनका किसी तीक्ष्ण औजार द्वारा आच्छेदन-विच्छेदन कर, उनसे मवाद या खून निकालकर, विशोधित कर, धोकर, मल्हम लगाकर, उन पर तेल, घृत, चिकने पदार्थ या मक्खन एक बार या अनेक बार मले - मसले अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। ३९: जो भिक्षु अपने शरीर में उत्पन्न गंडमाला, पैरों का फोड़ा, छोटी-छोटी फुन्सियाँ, बवासीर या भगन्दर - इनका किसी तीक्ष्ण औजार द्वारा आच्छेदन-विच्छेदन कर, उनसे मवाद यां खून निकालकर, विशोधित कर, धोकर, मल्हम लगाकर, तेल, घृत आदि मलकर, अग्नि में डाले हुए सुगन्धित पदार्थ - निष्पन्न धूप से निकलते हुए धुएँ द्वारा एक बार या अनेक बार वासित करे, धूमित करे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - इन सूत्रों में गंड शब्द का प्रयोग एक विशेष ग्रन्थि या गाँठ के लिए हुआ है। आयुर्वेदशास्त्र के अनुसार गले में एक ऐसी विशेष दोष-जनित ग्रन्थि या गाँठ उत्पन्न होती है, जो ऊपर से नीचे की ओर माला की तरह बढ़ती जाती हैं। वे गाँठे व्रण का रूप ले लेती हैं। कण्ठ या गले में होने से उन्हें कण्ठमाला कहा जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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