SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३८ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध ........................................................... कठिन शब्दार्थ - दो सुयक्खंधा - दो श्रुतस्कन्ध हैं, एकासरगा - एक सरीखे हैं, दसेसु चेव दिवसेसु - दस दिनों में ही, उद्दिसिज्जंति - उपदेश दिया जाता हैं, सेसं जहा आयारस्स-- शेष सब आचारांग की तरह जानना चाहिए। भावार्थ - विपाक सूत्र में दो श्रुतस्कन्ध हैं - दुःखविपाक और सुखविपाक। दुःखविपाक में दस अध्ययन हैं। वे सब एक सरीखे हैं। इन का उपदेश दस दिनों में ही दिया जाता है। इसी तरह सुखविपाक में भी दस अध्ययन हैं और वे सब एक सरीखे हैं। इनका भी उपदेश दस ही दिनों में दिया जाता है। शेष सब आचाराङ्ग सूत्र की तरह समझना चाहिये। विवेचन - विपाकश्रुत के दो श्रुतस्कन्ध हैं - १. दुःखविपाक - जिसमें दुष्ट कर्मों का । दुःखरूप विपाक-परिणाम कथाओं के रूप में वर्णित है। २. सुखविपाक - जिसमें शुभ कर्मों का सुखरूप विपाक-परिणाम (फल) कथाओं के रूप में वर्णित है। . सुखविपाक में दस अध्ययन हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं - १. सुबाहु २. भद्रनंदी ३. सुजात ४. सुवासव ५. जिनदास ६. धनपति ७. महाबल ८. भद्रनंदी ६. महाचन्द्र १०. वरदत्त। दसों प्राणी काल करके किस गति में गये उसके लिए स्पष्टीकरण इस प्रकार है - . पहले अध्ययन में सुबाहुकुमार का वर्णन है उसमें सुबाहुकुमार के भव सहित पन्द्रहवें भव में वह मोक्ष जायेगा। उसके लिए मूलपाठ में ये शब्द दिये हैं - "सिज्झिहिइ, बुझिहिड़, मुच्चिहिइ, परिणिव्वाइहिइ, सव्वदुक्खाणमंतं काहिई" इनकी संस्कृत छाया इस प्रकार हैं - “सेत्स्यति, भोत्स्यते, मोक्ष्यते, परिनिर्वास्यति, सर्व दुःखानाम् अंतं करिष्यति" जिनका क्रमशः अर्थ यह है कि - ‘कृत कार्य होने से सिद्ध होगा, केवलज्ञान के द्वारा सम्पूर्ण लोक अलोक को जानेगा, संपूर्ण कर्मों से मुक्त होगा, सम्पूर्ण कषाय के नष्ट होने से तथा सम्पूर्ण कर्मों के क्षय होने से शीतल बन जायेगा और शारीरिक तथा मानसिक सब दुःखों का अंत करेगा।' - ये सब क्रियाएं भविष्यकाल की है। इसलिए यह स्पष्ट है कि सुबाहुकुमार भविष्य में मोक्ष जायेगा अर्थात् देवता के सात और मनुष्य के आठ (सुबाहुकुमार के भव सहित) भव करके मोक्ष जायेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy