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________________ प्रथम अध्ययन - दीक्षा की तैयारी ३१५ ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ सोत्थिय, सिरीवच्छ, णंदियावत्तं, वद्धमाणग, भद्दासण, कलस, मच्छ, दप्पण जाव बहवे अत्थत्थिया जाव ताहिं इट्ठाहिं जाव अणवरयं अभिणंदंता य अभित्थुणंता य एवं वयासी - जय जय णंदा! जय जय भद्दा! जय णंदा! भदं ते, अजियाई जिणाहि इंदियाई, जियं च पालेहि समणधम्मं, जियविग्यो वि य, वसाहि तं देव! सिद्धिमझे णिहणाहि रागदोसमल्ले तवेणं धिइधणिय बद्धकच्छे मद्दाहि य अट्ठ कम्मसत्तू, झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं अप्पमत्ते पावय वितिमिरमणुत्तरं केवलं णाणं, गच्छ य परमपयं सासयं च अयलं हंता परीसहचमु णं अभीओ परीसहोवसग्गाणं धम्मे ते अविग्धं भवउ त्ति कट्ठ पुणो पुणो मंगल जय जय सदं पउंजंति। .तएणं से सुबाहुकुमारे हत्थिसीसस्स णयरस्स मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ णिग्गच्छित्ता जेणेक पुप्फकरंडे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुरिससहस्स-वाहिणीओ सीयाओ पच्चोरुहइ॥२३१॥ कठिन शब्दार्थ - दाहिणे पासे - दाहिनी तरफ, भद्दासणंसि - भद्रासन पर, अंबधाई- अंबधात्री-दूध पिलाने वाली-धायमाता, वरतरुणी - सुंदर स्त्री, सिंगारागारचारुवेसा - श्रृंगार का घर हो, उसका वेष बहुत सुंदर था, संगयगय-हसिय-भणिय-चिट्ठिय- विलाससंलावुल्लाव-णिउणजुत्तोवयार कुसला - चलने में, हंसने में, बोलने में, चेष्टा करने में, विलास. में-नेत्र विकार में, संलाप और उल्लाप में निपुण तथा लोक व्यवहार में बड़ी चतुर थी, आमेलग-जमल-जुयलवट्टियअब्भुण्णय पीणरइय संठिय पयोहरा - एक दूसरे से आपस में कुछ कुछ मिले हुए, समश्रेणी में रहे हुए, उसके दोनों स्तन गोल, ऊंचे उठे हुए, मोटे, सुखद और सुंदर आकार वाले थे, हिमरयय कुंदेंदुपगासं - बर्फ, चांदी और कुंद के फूल के समान सफेद और चन्द्रमा के समान कांति वाले, सकोरंटमल्लदामं - कोरंटवृक्ष के फूलों की माला से युक्त, आयवत्तं - छत्र को, सलीलं - प्रसन्नतापूर्वक, णाणामणि-कणग-रयण-महरिहतवणिज्जुज्जल विचित्तदंडाओ - नाना मणि सुवर्ण रत्न और बहुमूल्य लाल सोने से युक्त उज्ज्वल डंडी वाले, चिल्लियाओ - देदीप्यमान-चमकदार, सुहुमवरदीहबालाओ - पतले उत्तम और लम्बे बालों वाले, संख-कुंद-दगरय-अमयमहिय-फेणपुंजसण्णिगासाओ - शंख, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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