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________________ _ विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध ............................................ कठिन शब्दार्थ - जायसढे - जातश्रद्धः-श्रद्धा से युक्त, पजुवासइ - पर्युपासना करते हैं, अयमढे - यह अर्थ, पण्णत्ते - प्रतिपादन किया है-फरमाया है, विवागसुयस्स - विपाक श्रुत (सूत्र), सुयखंधा - श्रुतस्कन्ध, दुहविवागा - दुःखविपाक, सुहविवागा - सुखविपाक। भावार्थ - तदनन्तर आर्य जंबू नामक अनगार श्रद्धा से युक्त यावत् जहाँ पर सुधर्मा स्वामी विराजमान थे वहाँ आये, आकर तीन बार आदक्षिणा प्रदक्षिणा सहित विधि युक्त वंदना नमस्कार करते हैं। वंदना नमस्कार करके यावत् पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले हे भगवन्! मोक्ष संप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दशवें अंग प्रश्नव्याकरण सूत्र का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो हे भगवन्! ग्यारहवें अंग विपाकश्रुत का यावत् मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने क्या अर्थ फरमाया है? तब आर्य सुधर्मा अनगार ने आर्य जम्बू नामक अनगार को इस प्रकार कहा-हे जम्बू! निश्चय से इस प्रकार यावत् मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने ग्यारहवें अंग विपाक सूत्र के दो श्रुतस्कन्ध प्रतिपादित किये हैं। यथा-दुःखविपाक और सुखविपाक। हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने विपाक सूत्र नामक ग्यारहवें अंग के दो श्रुतस्कन्ध फरमाये हैं - जैसे कि-दुःखविपाक तथा सुखविपाक, तो हे भगवन्! प्रथम दुःखविपाक नामक श्रुतस्कन्ध के यावत् मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कितने अध्ययन प्रतिपादित किये हैं? तब आर्य सुधर्मा अनगार ने जम्बू अनगार को इस प्रकार कहा - हे जम्बू! यावत् मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के दश अध्ययन प्रतिपादित किये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. मृगापुत्र २. उज्झितक ३. अभग्न ४. शकट ५. वृहस्पति ६. नन्दी ७. उम्बर ८. शौरिकदत्त ६. देवदत्ता और १०. अंजू। विवेचन - आर्य जंबूस्वामी, आर्य सुधर्मा स्वामी को विधिवत् वन्दना नमस्कार कर उनकी सेवा में उपस्थित हुए और उपस्थित होकर बड़े विनम्र भाव से उनके श्रीचरणों में निवेदन किया कि-'हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने प्रश्नव्याकरण नामक दशवें अंग का जो अर्थ फरमाया है वह तो मैंने आपके श्रीमुख से सुन लिया है अब आप यह बतलाने की कृपा करें कि प्रभु ने विपाक सूत्र नामक ग्यारहवें अंग का क्या अर्थ फरमाया है?' सुधर्मा स्वामी ने जंबू अनगार की जिज्ञासा का समाधान करते हुए फरमाया कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने ग्यारहवें अंग सूत्र-विपाक सूत्र के दो श्रुतस्कंध कहे हैं। श्रुतस्कंध का अर्थ है - विभाग विशेष अर्थात् आगम के एक मुख्य विभाग अथवा कतिपय अध्ययनों के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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