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________________ १६४ विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध होगा जहां चारित्र ग्रहण कर सिद्धि प्राप्त करेगा। केवलज्ञान द्वारा समस्त पदार्थों को जानेगा, सम्पूर्ण कर्मों से रहित हो जाएगा, सकल कर्मजन्य संताप से रहित हो जाएगा तथा सब दुःखों . का अंत करेगा। निक्षेप-उपसंहार पूर्ववत् समझ लेना चाहिये। ___विवेचन - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी द्वारा कथित देवदत्ता के पूर्वजन्म संबंधी वृत्तांत सुन लेने के बाद गौतमस्वामी को उसके आगामी भवों की जिज्ञासा हुई। गौतमस्वामी की जिज्ञासा का समाधान करते हुए प्रभु ने उसके भविष्य का कथन किया जो भावार्थ से स्पष्ट है। सम्यक्त्व प्राप्ति के पश्चात् ही जीवन उत्थान के मार्ग पर अग्रसर होता है और उत्तरोत्तर सम्यक् पुरुषार्थ करता हुआ कर्मबंधनों को काट कर मोक्ष के अव्याबाध सुखों को प्राप्त करता है। यही देवदत्ता के कथानक का सार है। "णिक्खेवो"-निक्षेप शब्द से. इस अध्ययन का उपसंहार इस प्रकार समझना चाहिये - "हे जम्बू! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक सूत्र के नौवें अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है जो मैंने तुम्हें सुनाया है। जैसा मैंने सुना है वैसा ही तुम्हें कहा है, इसमें मेरी कोई निजी कल्पना नहीं है।" प्रस्तुत अध्ययन में विषयासक्ति की भयंकरता का दिग्दर्शन कराया गया है। कामासक्त व्यक्ति का पतन किस प्रकार होता है और वह किस हद तक अनर्थ कर देता है। अपने द्वारा बांधे हुए दुष्कर्मों का फल उसे रोते रोते किस प्रकार भुगतना पड़ता है। यह देवदत्ता के कथानक से स्पष्ट होता है। अतः मोक्षाभिलाषी प्राणी को विषय वासनाओं से दूर रहते हुए अपने जीवन को संयमित और मर्यादित बनाना चाहिये तभी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा। ॥ नवम अध्ययन समाप्त॥ . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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