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________________ ६४ नन्दी सूत्र ********************* ** ********************************************************* ऐसे सूक्ष्म काल से भी क्षेत्र अधिक सूक्ष्म है। इसका प्रमाण यह है कि एक समय मात्र में जीव या पुद्गल नीचे के लोकान्त से, १४ रज्जु परिणाम लोक क्षेत्र को पार कर ऊपरी लोकान्त में पहुँच जाता है। उस सम्पूर्ण लोकाकाश को एक ओर रखें और केवल उसकी एक अंगुल प्रमाण श्रेणी ही ग्रहण करें, तो उसमें भी इतने आकाश प्रदेश होते हैं कि प्रति समय उनमें से एक-एक आकाश प्रदेश का अपहरण किया जाये, तो उन सभी आकाश प्रदेशों को अपहृत होने में असंख्य अवसर्पिणियाँ और असंख्य उत्सर्पिणियाँ बीत जायेगी। इस प्रकार काल के सबसे छोटे विभाग'समय' से क्षेत्र का सबसे छोटा विभाग-'प्रदेश' इतना अधिक सूक्ष्म होता है। ऐसे सूक्ष्म क्षेत्र से भी द्रव्य अधिक सूक्ष्म है। इसका प्रमाण यह है कि आकाश के एक-एक प्रदेश में भी अनंत-अनंत अगुरुलघु द्रव्य एक दूसरे को बिना बाधा पहुंचाए, एक क्षेत्रावगाही होकर रहते हैं। __ऐसे सूक्ष्म द्रव्य से भी पर्यव अधिक सूक्ष्म हैं, इसका प्रमाण यह है कि प्रत्येक द्रव्य के प्रत्येक प्रदेश में अनन्त-अनन्त पर्यायें हो सकती हैं। यहां सूक्ष्म का अर्थ - 'अवगाहना में छोटा' नहीं है, क्योंकि आकाश का एक प्रदेश, एक परमाणु और एक पर्यव, ये सभी अवगाहना में पूर्ण समान हैं। अवगाहना में कोई भी किसी से छोटा-बड़ा नहीं है। यहाँ सूक्ष्म का अर्थ है - 'व्याघात न पाने वाला और व्याघात न देने वाला।' एक आकाश प्रदेश में परमाणु से लेकर अनन्त प्रदेशी अनन्त-अनन्त द्रव्य परस्पर व्याघात पाये पहुँचाये बिना रहते हैं और प्रति परमाणु एवं स्कन्ध प्रदेश में अनन्त-अनन्त पर्यायें परस्पर व्याघात पाये पहुँचाये बिना रहती हैं। इति नियम भजना प्ररूपणा समाप्त। से त्तं वड्डमाणयं ओहिणाणं॥१२॥ अर्थ - यह वह वर्द्धमान अवधिज्ञान है। ४. हीयमान अवधिज्ञान अब सूत्रकार अवधिज्ञान के चौथे भेद हीयमान का स्वरूप बतलाते हैं से किं तं हीयमाणयं ओहिणाणं? हीयमाणयं ओहिणाणं अप्पसत्थेहिं अज्झवसायट्ठाणेहिं वट्टमाणस्स वट्टमाणचरित्तस्स संकिलिस्समाणस्स संकिलिस्समाणचरित्तस्स सव्वओ समंता ओही परिहायइ, से त्तं हीयमाणयं ओहिणाणं॥ १३॥ प्रश्न - वह हीयमान अवधिज्ञान क्या है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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