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________________ गौ-सेवी ब्राह्मणों का दृष्टांत ******* **************************************************************************** भूमि पर बह जाने से उसमें जो रज आदि मिल जाते हैं, उससे सम्मिश्रित दूध पीना पड़ता है। साथ ही वह दूध आदि को बहुत ही शीघ्रता से चाटती है, जिससे उसे पाचन भी बराबर नहीं होता। इसी प्रकार कुछ श्रोता विनय से बचने के लिए व्याख्यान में आकर श्रुतज्ञान ग्रहण नहीं करते पर जो व्याख्यान सुनकर चले जाते हैं, उनसे पूछ कर सुनते हैं या ऐसे लोगों की परस्पर बातचीत सुन कर ही काम निकालने की वृत्ति रखते हैं। उन्हें श्रुतज्ञान का पूरा लाभ नहीं मिलता, फिर उन श्रोताओं में मोह, मति मन्दता आदि के कारण अन्यथा कथन रूप रज आ जाता है, उस दोष से मिश्रित व्याख्या सुनने को मिलती है। इसके अतिरिक्त ऐसे श्रोता, धैर्य एवं शांतिपूर्वक नहीं सुनते हैं। अतएव उन्हें उस श्रुतज्ञान का पूरा पाचन भी नहीं होता। ऐसे अविनीत श्रोता, श्रुतज्ञान के अपात्र हैं। कुछ श्रोता जाहक के समान विनीत होते हैं। जाहक, दुध आदि को भाजन में रहते हए ही पीता है। थोड़ा-थोड़ा पीता है, इधर-उधर के पार्श्वभागों को चाटते हुए पीता है। इससे उसे पूरा दूध पीने को मिलता है, शुद्ध दूध पीने को मिलता है और दूध का पूरा पाचन होता है। ऐसे जो श्रोता होते हैं, वे आचार्य आदि का यथायोग्य विनय करते हैं, विनय पूर्वक उनके चरणों में बैठकर श्रुतज्ञान ग्रहण करते हैं। अपनी मन्द या तीव्र ग्रहण धारणा शक्ति के अनुसार अल्प-बहुत मात्रा में श्रुतज्ञान ग्रहण करते हैं और ग्रहण करके उसे दुहराकर परिपक्व बनाते हैं। इससे उन्हें श्रुतज्ञान का पूरा लाभ मिलता है। शुद्ध रूप में लाभ मिलता है और पूरा पाचन होता है। ऐसे विनीत श्रोता, श्रुतज्ञान के पात्र हैं। १२. गौ-सेवी ब्राह्मणों का दृष्टांत कुछ श्रोता, गाय की सेवा नहीं करने वाले ब्राह्मणों की भाँति गुरु की वैयावृत्य रहित होते हैं। एक गांव में चार ब्राह्मण रहते थे। वे चारों चौबे (चारों वेद के जानकार) थे। किसी कुटुम्बी ने एक पर्व के दिन उनसे कथा करवाई और दक्षिणा में उन्हें अन्य वस्तुओं के साथ एक नीरोग हृष्टपुष्ट और विशेष दूध देने वाली विनीत गाय दी। उस गाय के मिलने पर उन्होंने सोचा-'हम चार हैं और गाय एक है। हमें इसका उपभोग किस प्रकार करना चाहिए?' तब एक ने कहा - 'हम लोग एक एक दिन बारी-बारी से गाय दुहते रहें।' यह सुझाव सबको उचित लगा और सभी ने स्वीकार कर लिया। पहले दिन सबसे बड़े ब्राह्मण को गाय दी गई। उस ब्राह्मण ने गाय घर ले जाकर सोचा-"मैं तो इस गाय को आज ही दूहूँगा, कल तो दूसरा दुहेगा। अतः इसे निरर्थक चारा पानी क्यों डालूँ ? यह सोचकर उसने गाय का दूध तो दुह लिया, परन्तु दुहने से पहले या पीछे उस गाय को चारा पानी नहीं दिया। इससे वह गाय बिचारी दिन रात भूखी-प्यासी ही रही। रात को उसकी शीत से रक्षा का प्रबंध भी नहीं किया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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