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________________ २८० नन्दी सूत्र *** से किं तं दव्वाणुण्णा? दव्वाणुण्णा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - १ आगमओ य, २ णो आगमओ य। प्रश्न - वह द्रव्य अनुज्ञा क्या है ? । (उपयोग रहित अनुज्ञा पद के ज्ञाता को या अनुज्ञा नन्दी आगम के ज्ञाता को 'द्रव्य अनुज्ञा' कहते हैं अथवा भाव अनुज्ञा के कारण को द्रव्य अनुज्ञा कहते हैं अथवा द्रव्य विषयक अनुज्ञा को द्रव्य अनुज्ञा कहते हैं।) ___उत्तर - द्रव्य अनुज्ञा के दो भेद हैं - १. आगम से द्रव्य अनुज्ञा और २. नो आगम से द्रव्य अनुज्ञा। से किं तं आगमओ दव्वाणुण्णा? आगमओ दव्वाणुण्णा, जस्सणं अणुण्णापयं सिक्खियं, ठियं, जियं, मियं, परिजियं, णामसमं, घोससमं, अहीणक्खरं, अणच्चक्खरं, अव्वाइद्धक्खरं, अक्खलियं, अमिलियं, अवच्चामेलियं, पडिपुण्णं, पडिपुण्णघोसं, कंठोडविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं से णं तत्थ वायणाए, पुच्छणाए, परियट्टणाए, धम्मकहाए, णो अणुप्पेहाए। प्रश्न - वह आगम से द्रव्य अनुज्ञा क्या है? __ (उपयोग रहित अनुज्ञापद के ज्ञाता को या अनुज्ञा नंदी आगम के ज्ञाता को 'आगम से द्रव्य अनुज्ञा' कहते हैं।) उत्तर - जैसे - किसी जीव ने अनुज्ञापद या 'अनुज्ञा नन्दी' नामक आगम को (१) सीखा - आदि से अन्त तक पढ़ा, (२) स्थित किया - कंठस्थ किया, (३) जीता - शीघ्र पुनरावृत्ति कर सके, ऐसा स्मरण किया, (४) मित किया - अनुज्ञानन्दी आगम कितने श्लोक परिमाण हैं, उसमें कितने पद हैं, कितने स्वर हैं, कितने व्यंजन हैं, कितनी मात्राएँ हैं इत्यादि परिमाण को भी बता सके, ऐसा ध्यान पूर्वक कंठस्थ किया, (५) परिजित किया - आदि से, मध्य से, अन्त से, क्रम से, उत्क्रम से, कहीं से भी, किसी भी प्रकार से पूछे, तो भी बता सके, ऐसा परिचित किया, (६) नामसम किया - जैसे प्राणी अपना नाम जानता है, उसमें प्रायः कभी उसका विस्मरण नहीं होता, इसी प्रकार अनुज्ञा नन्दी आगम को अत्यंत स्थिर किया, (७) घोसमय है- पढ़ते समय जैसे गुरु ने उच्चारण कराया, वैसा ही उच्चारण करता है, (८) अहीन अक्षर पढता है - एक अक्षर भी कहीं न छूटे-ऐसा पढ़ता है, (९) अनति अक्षर पढ़ता है - एक अक्षर भी कहीं अधिक न हो-ऐसा पढ़ता है, (१०) अव्याविद्ध अक्षर पढ़ता है - जैसे टूटी हुई माला में मणियाँ बिखर जाती हैं, उसी प्रकार जो बिखरे हुए अस्त-व्यस्त अक्षर नहीं पढ़ता, परन्तु जैसे संधी हुई माला में मणियाँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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