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________________ नन्दी सूत्र ****** ***** * ** * * * * **** रूप झरनों में, संसारियों की तृष्णा को मिटाने वाला, कर्ममल को धोने वाला और परिणाम में आत्म-सुखकर श्रेष्ठ जल निरन्तर बढ़ता है। इति उज्झर उपमा। तुम उपाश्रय रूप कुहरे से युक्त हो, जिसमें श्रावकजन रूप मयूर स्तुति आदि रूप प्रचुर केकारव और भक्ति वैयावृत्य रूप नृत्य करते हैं। इति कुहर उपमा। विणय-नय-पवर-मुणिवर, फुरंत-विज्जुज्जलंत-सिहरस्स। विविह-गुण-कप्प-रुक्खग, __फल-भर-कुसुमाउल-वणस्स॥१६॥ तुम आचार्य आदि रूप ज्वलन्त शिखर वाले हो, जिसमें श्रेष्ठ मुनिवर रूप चमकती बिजलियाँ हैं, जो विनय एवं तप रूप चमकाहट वाली है। इति शिखर उपमा। तुम में गण-गच्छ, संप्रदाय रूप भद्रशालादि वन हैं, जिनमें विविध गुणधारी मुनिवर रूप कल्पवृक्ष हैं, जो धर्म रूप फल भार युक्त है और नाना ऋद्धि रूप कुसुम से संकुल हैं। इति वन उपमा। नाण-वर-रमण-दिप्पंत, कंत-वेरुलिय-विमल-चूलस्स। वंदामि विणय-पणओ, संघमहामंदरगिरिस्स॥१७॥ तुम श्रेष्ठ ज्ञान रत्न रूप वैडूर्य रत्नमयी चूलिका वाले हो। जैसे मेरु की वैडूर्य रत्नमयी चूला देदीप्यमान है, वैसे ही तुम्हारी ज्ञानरूप चूला देदीप्यमान है, क्योंकि सूत्रार्थ अत्यन्त परिचित है। जैसे-मेरु की चूला कान्त-कमनीय है, वैसे ही तुम्हारी ज्ञान रूप चूला कमनीय है, क्योंकि भव्यजनों का मन हरण करती है। जैसे-मेरु की चूला विमल है, वैसे ही तुम्हारी ज्ञान रूप चूला विमल है, क्योंकि उसमें जीवादि पदार्थों का यथातथ्य स्वरूप उपलब्ध होता है। इति चूला उपमा। ऐसे ही संघरूप महामंद गिरि! मैं तुम्हारे यश की विनय सहित गाथा गाता हूँ। फिर से संक्षप में मेरु की उपमा से संघ की स्तुति करते हैं। गुण-रयणुज्जल-कडयं, सील-सुगंधि-तव-मंडिउद्देसं। सय-बारसंग-सिहरं, संघमहामंदरं वंदे॥ १८॥ मेरु पर्वत की उपमा वाले हे संघ! तुम गुण रत्न रूप उज्ज्व कटक-पर्वत-तटवाले हो, तुम्हारा उद्देश-प्रदेश, शीलरूप सुगन्ध से सुगन्धित और तपरूप आभूषणों से मण्डित है। तुम बारह अंगवाले श्रुतरूप शिखर वाले हो। ऐसे हे संघ रूप महामन्दर! मैं तुम्हारी स्तुति करता हूँ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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