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________________ मति ज्ञान का उपसंहार २०३ होते ही श्रोत्र शब्द को सुन लेती है, क्योंकि श्रोत्र उपकरण द्रव्य-इंद्रिय के पुद्गल बहुत पटु हैं तथा शब्द के पुद्गल सूक्ष्म बहुत और अधिक भावुक होते हैं। . जिस प्रकार दर्पण से किसी पदार्थ के स्पर्श हुए बिना ही (केवल सामने आने से ही) पदार्थ के प्रतिबिम्ब को दर्पण ग्रहण कर लेता है, उसी प्रकार चक्षु उपकरण द्रव्य इंद्रिय से पदार्थ का स्पर्श हुए बिना ही (केवल चक्षु के सामने आने से ही) चक्षु रूप को जान लेती है। जैसे - लोह को अग्नि के उसका स्पर्श होने से ही नहीं पकड़ता, पर जब अग्नि, लोह में प्रविष्ट होती है, तभी लोह अग्नि को पकड़ता है, वैसे ही घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन-उपकरण-द्रव्य, इन्द्रियों के साथ, गंध, रस और स्पर्श पुद्गलों का स्पर्शमात्र होने से, घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन लब्धि भावेन्द्रियाँ गंध, रस और स्पर्श को नहीं जानती, पर जब घ्राण, जिह्वा और स्पर्श उपकरण द्रव्य इंद्रियों के प्रदेशों के प्रदेशों से, गन्ध, रस और स्पर्श पुद्गल परस्पर एकमेक हो जाते हैं (= एक दूसरे में प्रभावित हो जाते हैं) तभी घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन-लब्धिभाव इंद्रियाँ, गन्ध, रस और स्पर्श को जान सकती है, क्योंकि श्रोत्र उपकरण द्रव्य इंद्रियों के पुद्गलों से घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन-उपकरण-द्रव्यइंद्रिय के पुद्गल क्रमश: उत्तरोत्तर मन्द हैं और गंध, रस और स्पर्श पुद्गल भी क्रमशः बादर, अल्प और मन्द-भावुक हैं। - अब सूत्रकार-'इन्द्रियाँ कब कैसे विषय को ग्रहण करती हैं'-यह बताते हैं। भासासमसेढीओ, सई जं सुणइ मीसियं सुणइ। वीसेढी पुण सई, सुणेइ णियमा पराघाए॥८६॥ अर्थ - जो व्यक्ति समश्रेणी में होता है, वह मिश्र पुद्गल सुनता है; किन्तु जो विषम श्रेणी में होता है, वह नियत रूप से पराघात-वासित शब्द पुद्गल सुनता है। विवेचन - जो श्रोता छहों दिशाओं में से किसी भी दिशा में, यदि वक्ता की समश्रेणी में रहा हुआ हो, तो वह जो शब्द सुनता है, वह मिश्रित सुनता है-कुछ वक्ता के द्वारा भाषा-वर्गणा के भाषा रूप में परिणत करके छोडे गये शब्द पुदगल सुनता है और कुछ उन भाषा परिणत शब्द पुद्गलों से प्रभावित होकर शब्द रूप में परिणत शब्द पुद्गल सुनता है। प्रश्न - क्यों? उत्तर - इसलिए कि वक्ता द्वारा शब्द रूप में परिणत पुद्गल छहों दिशाओं में वक्ता की समश्रेणी में गति करते हुए उत्कृष्ट लोकान्त तक पहुँचते हैं और समश्रेणी में रहे हुए शब्द वर्गणा के पुद्गलों को प्रभावित कर शब्द रूप में परिणत करते जाते हैं। - जो श्रोता वक्ता की विषमश्रेणी में, किसी भी दिशा में रहा हुआ हो, तो वह जो शब्द सुनता है, वह नियम से प्रभावित शब्द ही सुनता है। वक्ता के द्वारा शब्द रूप में परिणत शब्द पुद्गल नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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