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________________ १८२ नन्दी सूत्र हटने लगा। उसे पीछे हटते देखकर लोगों को नैमित्तिक के वचन पर पूरा विश्वास हो गया। उन्होंने स्तूप को उखाड़ कर फेंक दिया। अब नगरी प्रभाव रहित हो गई। कुलबालुक के संकेत के अनुसार कोणिक ने आकर नगरी पर आक्रमण कर दिया। उसके कोट को गिरा दिया और नगरी को नष्ट भ्रष्ट कर दिया। “श्री मुनिसुव्रत स्वामी के स्तूप को उखड़वा देने से विशाला नगरी का कोट गिराया जा सकता है"-ऐसा जानना कुलबालुक की पारिणामिकी बुद्धि थी। इसी प्रकार कुलबालुक साधु को अपने वश में करने की मागधिका वेश्या की पारिणामिकी बुद्धि थी। ___ यहाँ मतिज्ञान की कथाएँ-औत्पात्तिकी बुद्धि की २७ (इनमें रोहक की प्रथम कथा के अन्तर्गत १४ उपकथाएँ भी सम्मिलित है। इस प्रकार औत्पात्तिकी बुद्धि की कुल ४१ कथाएँ हुई) वैनयिकी बुद्धि की १५, कार्मिकी बुद्धि की १२ और पारिणामिकी बुद्धि की २१, इस प्रकार चारों प्रकार की बुद्धि को सरलता से समझाने वाली कुल ७५ कथाएँ (उपकथा सहित ८१) हुई। अब सूत्रकार श्रुतनिश्रित मतिज्ञान का वर्णन करते हैं। से किं तं सुयणिस्सियं? सुयणिस्सियं चउव्विहं पण्णत्तं तं जहा-उग्गहे १ ईहा २ अवाहो ३ धारणा ४। प्रश्न - वह श्रुतनिश्रित मतिज्ञान क्या है ? उत्तर - श्रुतनिश्रित मतिज्ञान के चार भेद हैं। यथा - १. अवग्रह २. ईहा ३. अवाय और ४. धारणा। १. अवग्रह - ग्रहण करना, सम्बन्ध होना और जानना। २. ईहा - विचारणा करना। ३. अवाय (अपाय) - व्यवसाय करना, निश्चय करना, निर्णय करना। ४. धारणा - ज्ञान में धारण करना। विवेचन - जिस मतिज्ञान का श्रुतज्ञान से सम्बन्ध हो, जिस मतिज्ञान से सीखा हुआ श्रुतज्ञान काम आता हो, जिस मतिज्ञान पर पहले सीखे हुए श्रुतज्ञान का प्रभाव हो, उस मतिज्ञान को - 'श्रुतनिश्रित मतिज्ञान' कहते हैं। इसका दूसरा नाम 'मति' है। अवग्रह के भेद से किं तं उग्गहे? उग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अत्थुग्गहे य वंजणुग्गहे य ॥२७॥ प्रश्न - वह अवग्रह क्या है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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