SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ *********************** नन्दी सूत्र ******************************************************** * * सच्चाई और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध था। लोग कहते थे-"पुरोहितजी किसी की धरोहर नहीं दबाते। बहुत समय से रक्खी हुई धरोहर को भी वे ज्यों की त्यों लौटा देते हैं।" इसी विश्वास पर एक गरीब आदमी ने अपनी धरोहर उनके पास रखी और वह परदेश चला गया। बहुत समय के बाद परदेश से लौटा और पुरोहित के पास जाकर अपनी धरोहर मांगी। पुरोहित बिल्कुल अनजानसा बन कर कहने लगा-"तुम कौन हो? मैं तुम्हें नहीं जानता। तुमने मेरे पास धरोहर कब रखी थी?" पुरोहित का वचन सुन कर वह हक्का-बक्का सा रह गया। धरोहर ही उसका सर्वस्व था। उसके चले जाने से वह शून्य चित्त होकर इधर-उधर भटकने लगा। . एक दिन उसने प्रधानमन्त्री को जाते देखा। वह उनके पास पहुँचा और कहने लगा-"मन्त्री जी! एक हजार मोहरों की मेरी धरोहर मुझे पुरोहित जी से दिलवा दीजिए।" उसके वचन सुन कर प्रधानमन्त्री सारी बात समझ गया। उसको उस पुरुष पर बड़ी दया आई। उसने इस विषय में राजा से निवेदन किया और उस गरीब को भी हाजिर किया। राजा ने पुरोहित को बुला कर कहा-"तुम इस पुरुष की धरोहर वापिस क्यों नहीं लौटाते?" पुरोहित ने कहा-"राजन्! मैंने इसकी धरोहर रखी ही नहीं, मैं कहाँ से लौटाऊँ?" यह सुन कर राजा चुप रह गया। जब पुरोहित अपने घर वापिस लौट गया, तब राजा ने उस व्यक्ति से पूछा-"बतलाओ, सच बात क्या है ? तुमने पुरोहित के पास धरोहर किस समय रखी थी और किसके सामने रखी थी?" इस पर उस गरीब ने स्थान, समय और उपस्थित व्यक्तियों के नाम बता दिए। उसकी बात सुन कर राजा को उसकी बात पर विश्वास हो गया। दूसरे दिन राजा ने पुरोहित को राजभवन में बुला कर उस के साथ खेल खेलना शुरू किया। खेलते-खेलते राजा ने अपनी और पुरोहित की अंगूठियाँ आपस में बदल लीं। इसके पश्चात् अपने एक विश्वस्त सेवक को बुलाकर उसे पुरोहित की अंगूठी दी और कहा-"पुरोहितं के घर जाकर उनकी स्त्री से कहना-"पुरोहित जी अमुक दिन अमुक समय धरोहर रखी हुई उस गरीब की एक हजार मोहरों की थैली मँगा रहे हैं। आप के विश्वास के लिए उन्होंने अपनी अंगूठी भेजी है।" पुरोहित जी के घर जाकर उसने पुरोहित की स्त्री से ऐसा ही कहा। पुरोहित की अंगूठी देखकर तथा अन्य बातों के मिल जाने से स्त्री को विश्वास हो गया और उसने आये हुए पुरुष को उस गरीब की थैली दे दी। राजा ने दूसरी अनेक थैलियों के बीच में वह थैली रख दी और उस गरीब को बला कर कहा कि-"इनमें से जो थैली तम्हारी हो. उसे उठा लो।" गरीब ने अपनी थैली पहचान कर तुरन्त उठा ली और बहुत प्रसन्न हुआ। राजा ने पुरोहित को जिह्वा-छेद का कठोर दण्ड दिया। धरोहर का पता लगाने में राजा की औत्पत्तिकी बुद्धि थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy