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________________ मति ज्ञान - कूप प्रेषण १०९ गाँव के लोगों ने राजा के पास जाकर रोहक के कथनानुसार निवेदन किया। यह उत्तर सुनकर राजा बहुत लज्जित हुआ। उसने उनसे पूछा-"तुम को यह युक्ति किसने बताई?" लोगों ने रोहक का नाम बताया। रोहक की बुद्धि से राजा बहुत खुश हुआ। रोहक की बुद्धि का यह छठा उदाहरण है। ७. हाथी की मौत एक समय राजा ने एक बूढ़ा बीमार हाथी गाँव वालों के पास भेजा और यह आदेश दिया कि-"मुझे हाथी की दिनचर्या की सूचना प्रतिदिन देते रहना, किंतु "हाथी मर गया है।"-ऐसी खबर मुझे नहीं देना, अन्यथा तुम लोगों को भारी दण्ड दिया जायेगा।" गाँव वाले लोग, हाथी को धान, घास और पानी आदि देकर उसकी खूब सेवा करने लगे और प्रतिदिन राजा के पास उसके स्वास्थ्य की खबर भेजते रहे, किंतु हाथी की बीमारी बहुत बढ़ चुकी थी, इसलिए वह थोड़े ही दिनों में मर गया। अब सभी लोग एकत्रित हुए और फिर विचारने लगे कि-'राजा को हाथी की अवस्था की सचना किस प्रकार दी जाय। बहत विचार करने पर भी उन्हें कोई उपाय नहीं सूझा। वे बहुत चिन्तित हुए और रोहक को बुला कर सारी हकीकत कही। रोहक ने उन्हें तुरन्त एक युक्ति बताई, जिससे सभी लोगों की चिन्ता दूर हो गई। राजा के पास जाकर उन्होंने निवेदन किया कि-"स्वामिन् ! आज हाथी न उठता है, न बैठता है, न खाता है, न पीता है, न हिलता है, न डुलता है, यहाँ तक कि श्वासोच्छ्वास भी नहीं लेता है। विशेष क्या कहें ? आज उसमें सचेतनता की एक भी चेष्टा दिखाई नहीं देती।" राजा ने पूछा-"तो क्या हाथी मर गया है?" गाँव वालों ने कहा-"महाराज! आप ही ऐसा कह सकते हैं, हम लोग नहीं।" गाँव वालों का कथन सुन कर राजा निरुत्तर हो गया। राजा ने इस प्रकार की युक्ति बताने वाले का नाम पूछा। लोगों ने कहा-"रोहक ने हमें यह उत्तर देने की युक्ति बताई है।" यह सुन कर राजा बहुत खुश हुआ। रोहक की बुद्धि का यह सातवाँ उदाहरण है। ८. कूप प्रेषण . कुछ दिनों के बाद राजा ने उन गाँव वालों के पास यह आदेश भेजा कि "तुम्हारे गाँव में एक मीठे जल का कुआँ है, उसे हमारी उज्जयिनी नगरी में भेज दो।" राजा के उपरोक्त आदेश को सुन कर सभी लोग चकित हुए। वे सब विचार में पड़ गये कि राजा की इस आज्ञा को किस तरह पूरा किया जाय? इस विषय में भी उन्होंने रोहक से पूछा। रोहक ने उन्हें एक युक्ति बताई। उन्होंने राजा के पास जाकर निवेदन किया कि "स्वामिन्! ग्रामीण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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