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________________ मति ज्ञान - मुर्गे का युद्धाभ्यास १०७ ************************ + +++++++++++++++++-+-+ -+- *- * -*-*-*-*-*-*-*-*-*-* ३. मेढ़े का वजन कुछ दिनों बाद राजा ने रोहक की बुद्धि की फिर से परीक्षा के लिए एक मेढ़ा भेजा और गांव वालों को यह आज्ञा दी कि पन्द्रह दिन के बाद हम इस मेढ़े को वापिस मंगाएँगे। आज इसका जितना वजन है, पन्द्रह दिन के बाद भी उतना ही वजन रहना चाहिए। मेढ़ा वजन में न घटना चाहिए और न ही बढ़ना चाहिए। . राजा की उपरोक्त आज्ञा सुनकर गाँव के लोग फिर चिन्तित हुए। वे विचारने लगे-"यह कैसे संभव होगा? यदि मेढ़े को खाने के लिए दिया जायेगा, तो वह वजन में बढ़ेगा और यदि खाने को नहीं दिया जायेगा, तो वजन में अवश्य घट जायेगा। राजा की यह आज्ञा बड़ी विचित्र है। इसका किस तरह पालन किया जाय?" इस प्रकार गांव के लोग चिन्ता में पड़ गये। राजा की आज्ञा को पूरा करने का उन्हें कोई उपाय नहीं सूझा। वे लोग, रोहक की बुद्धि का चमत्कार देख चुके थे। इसलिए उन्होंने रोहक को बुलाया और कहा कि-"वत्स! तुमने अपने बुद्धिबल से पहले भी गाँव के कष्ट को दूर किया था। आज फिर गाँव पर कष्ट आया है। तुम अपने बुद्धिबल से इसे दूर करो।" ऐसा कह कर उन्होंने राजा की आज्ञा रोहक को कह सुनाई। रोहक ने कहा-"खाने के लिए मेढ़े को घास, जौ आदि यथा समय दिया करो, किन्तु इसके सामने एक भेड़िया बाँध दो। यथा समय दिया जाने वाला भोजन इसे घटने नहीं देगा और भेड़िये का डर इसे बढ़ने नहीं देगा। इस प्रकार दोनों मिलकर इसे वजन में न घटने देंगे और न बढ़ने देंगे।" रोहक की बात सब लोगों को पसन्द आ गई। उन्होंने रोहक के कथनानुसार मेढ़े की व्यवस्था कर दी। पन्द्रह दिन बाद गांव वालों ने वह मेढ़ा राजा को वापिस लौटा दिया। राजा ने उसे तोल कर देखा, तो उसका वजन लगभग उतना ही निकला, वजन न तो खास घटा और खास बढ़ा। राजा के पूछने पर उन लोगों ने सारा वृत्तांत कह दिया। राजा रोहक की बुद्धि से बड़ा प्रसत्र हुआ। रोहक की बुद्धि का यह तीसरा उदाहरण है। ४. मुर्गे का युद्धाभास रोहक की बुद्धि की परीक्षा करने के लिए कुछ दिनों के बाद राजा ने, गाँव वालों के पास एक मुर्गा भेजा और यह आज्ञा दी कि 'दूसरे मुर्गे के बिना ही इस मुर्गे को लड़ना सिखाओ और इसे लड़ाकू बना कर वापिस हमारे पास भेजो।' . राजा की आज्ञा का पालन करने के लिए गाँव के लोग उपाय सोचने लगे, किन्तु उन्हें कोई उपाय नहीं सूझा। उन्होंने रोहक से इस विषय में पूछा। रोहक ने कहा-"इस मुर्गे के सामने एक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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