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________________ केवलज्ञान का स्वामी ************** ****************************** **************************** किया, उन्हें 'प्रत्येक बुद्ध' कहते हैं। जो प्रत्येक बुद्ध होकर सिद्ध हुए, उन्हें 'प्रत्येक बुद्ध सिद्ध' कहते हैं। जैसे नमिराजर्षि आदि। ७. बुद्ध बोधित सिद्ध - जिन्होंने स्वयं या किसी बाह्य निमित्त से नहीं, परन्तु गुरु से बोध पाया, उन्हें 'बुद्ध बोधित' कहते हैं, जो बुद्ध से बोधित होकर सिद्ध हुए उन्हें 'बुद्ध बोधित सिद्ध' कहते हैं। जैसे संयतिराजा आदि। ८. स्त्रीलिंग सिद्ध - जो स्त्री शरीराकृति में रहते हुए सिद्ध हुई, उन्हें 'स्त्रीलिंग सिद्ध' कहते हैं। जैसे चंदनबाला आदि। लिंग तीन प्रकार का माना गया है - १. वेद - मैथुनेच्छा २. शरीर आकृति-योनि, मेहन आदि ३. वेश-नेपथ्य। वेद रहते हुए मोक्ष हो ही नहीं सकता और वेश अप्रमाण है। अतएव यहाँ लिंग से तथाविध शरीर आकृति ही ग्रहण करना चाहिए। ९. पुरुषलिंग सिद्ध - जो पुरुष शरीर आकृति में सिद्ध हुए, उन्हें 'पुरुषलिंग सिद्ध' कहते हैं। जैसे गौतम आदि। १०. नपुंसक लिंग सिद्ध - जो नपुंसक शरीर आकृति के रहते हुए सिद्ध हुए उन्हें 'नपुंसक लिंग सिद्ध' कहते हैं। जैसे गांगेय आदि। .११. स्वलिंग सिद्ध - जैन साधुओं का जो अपना लिंग है, वह 'स्वलिंग' है। स्वलिंग के दो प्रकार है - १. द्रव्यलिंग-रजोहरण और मुखवस्त्रिका, ये साधुओं के अपने बाहरी लिंग, 'द्रव्यलिंग' हैं। २. भावलिंग - अर्हन्त कथित सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप, ये जैनों के अपने भीतरी 'भावलिंग' हैं। भावलिंग आये बिना तो कोई भी सिद्ध होता ही नहीं। अतएव यहाँ द्रव्यलिंग से प्रयोजन है। फलित यह हुआ कि जो जैन साधुत्व प्रदर्शक रजोहरण-मुखवस्त्रिका रूप लिंग-वेश, -चिह्न के रहते सिद्ध हुए वे 'स्वलिंग सिद्ध' हैं। जैसे भरत चक्रवर्ती आदि। १२. अन्यलिंग सिद्ध - जो (भाव लिंग की अपेक्षा जैन लिंग से, किन्तु द्रव्यलिंग की अपेक्षा) जैन से इतर अन्य मत के कषाय वस्त्र, कमण्डलु, त्रिशूल आदि लिंग (वेश) में रहते हुए सिद्ध हुए, वे 'अन्यलिंग सिद्ध' हैं। जैसे वल्कलचीरी आदि। १३. गृहस्थलिंग सिद्ध - जो (भावलिंग की अपेक्षा भाव जैन साधुत्वलिंग से, किन्तु द्रव्यलिंग की अपेक्षा) गृहस्थ लिंग (गृहस्थ वेश) में रहते हुए सिद्ध हुए, वे 'गृहस्थलिंग सिद्ध' हैं। जैसे मरुदेवी आदि। १४. एक सिद्ध - जो अपने सिद्ध होने के समय में अकेले सिद्ध हुए, वे 'एक सिद्ध' हैं। जैसे भगवान् महावीर स्वामी। ... १५. अनेक सिद्ध - जो अपने सिद्ध होने के समय में अनेक-जघन्य दो, उत्कृष्ट एक सौ आठ सिद्ध हुए, वे 'अनेक सिद्ध' हैं। जैसे ऋषभदेव आदि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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