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________________ २३४ जीवाजीवाभिगम सूत्र .000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 प्रश्न - हे भगवन्! कालोदधि समुद्र के पानी का स्वाद कैसा है ? उत्तर - हे गौतम ! कालोदधि समुद्र के पानी का स्वाद पेशल-मनोज्ञ, मांसल-परिपुष्ट करने वाला, काला, उडद राशि की तरह कृष्णकांति वाला है और प्रकृति से अकृत्रिम रस वाला है। प्रश्न - हे भगवन्! पुष्करोद समुद्र के जल का स्वाद कैसा है ? उत्तर - हे गौतम! पुष्करोद समुद्र का जल स्वच्छ है, उत्तम जाति का है, हल्का है, स्फटिक मणि जैसी कांतिवाला और प्रकृति से अकृत्रिम रस वाला है। ___वरुणोदस्स णं भंते!०? गोयमा! से जहा णामए-पत्तासवेइ वा चोयासवेइ वा खजूरसारेइ वा मुद्दियासारेइ वा सुपक्कखोयरसेइ वा मेरएइ वा काविसायणेइ वा चंदप्पभाइ वा मणसिलाइ वा वरसीहूइ.वा पवरवारुणीइ वा अट्ठपिट्ठपरिणिट्ठियाइ वा जंबूफलकालियाइ वा वरप्पसण्णा उक्कोसमयप्पत्ता ईसिउट्ठावलंबिणी ईसितंबच्छिकरणी ईसिवोच्छेयकरणी आसला मासंला पेसला वण्णेणं उववेया जाव भवे एयारूवे सिया? णो इणटे समढे, गोयमा! वारुणोदए० इत्तो इद्रुतराए चेव जाव आसाएणं प०। खीरोदस्स णं भंते!० उदए केरिसए आसाएणं पण्णत्ते? गोयमा! से जहा णामए-रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चाउरक्के गोखीरे पयत्तमंदग्गिसुकढिए आउत्तरखंडमच्छंडिओववेए वण्णेणं उववेए जाव फासेणं उववेए, . भवे एयारूवे सिया? णो इणढे समढे, गोयमा! खीरोयस्स० एतो इट्ठ जाव आसाएणं पण्णत्ते। घओदस्स णं० से जहा णामए-सारइयस्स गोघयवरस्स मंडे सल्लइकण्णियारपुष्फवण्णाभे सुकड्डियउदारसज्झवीसंदिए वण्णेणं उववेए जाव फासेणं उववेए, भवे एयारूवे सिया?, णो इणढे समढे, इत्तो इट्ठयरा०, खोदोदस्स० से जहा णामए उच्छृणं जच्चपुंडगाणं हरियालपिंडराणं भेरुंडछणाण वा कालपोराणं तिभागणिव्वाडियवाडगाणं बलवगणरजंतपरिगालियमित्ताणं जे य रसे होजा वत्थपरिपुए चाउज्जायगसुवासिए अहियपत्थे लहुए वण्णेणं उववेए जाव भवेयारूवे सिया?, णो इणढे समढे, एत्तो इट्ठयरा०, एवं सेसगाणवि समुद्दाणं भेदो जाव सयंभूरमणस्स, णवरि अच्छे जच्चे पत्थे जहा पुक्खरोदस्स॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वरुणोद समुद्र के पानी का स्वाद कैसा है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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