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________________ प्रथम प्रतिपत्ति - तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों का वर्णन - स्थलचर के भेद ७५ होते हैं, असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंचों में भी उत्पन्न होते हैं, चतुष्पदों में भी उत्पन्न होते हैं और पक्षियों में भी उत्पन्न होते हैं। मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं तो कर्मभूमि मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, अकर्मभूमि मनुष्यों में नहीं। संख्यात वर्ष की आयु वाले और असंख्यात वर्ष की आयु वाले अंतरद्वीप के मनुष्यों में भी ये उत्पन्न होते हैं। देवों में भवनपति देवों और वाणव्यंतर देवों में उत्पन्न होते हैं इसके आगे के देवों में नहीं क्योंकि वहां असंज्ञी आयु का अभाव है। २३. गति आगति द्वार - ये जलचर सम्मूर्छिम जीव दो गति (मनुष्य और तिर्यच) से आने वाले और चारों गतियों में जाने वाले होते हैं। स्थलचर के भेद से किं तं थलयर संमच्छिम पंचेंदिय तिरिक्ख जोणिया? थलयर सम्मुच्छिम पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - चउप्पय थलयर सम्मुच्छिय पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया य परिसप्प थलयर सम्मुच्छिम पंचेंदिय तिरिक्ख जोणिया य। भावार्थ - प्रश्न - स्थलचर सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - स्थलचर सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - १. चतुष्पद स्थलचर सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक और २. परिसर्प स्थलचर सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक। से किं तं चउप्पय थलयर संमुच्छिम पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया? चउप्पय थलयर संमुच्छिम पंचेंदिय तिरिक्ख जोणिया चउव्विहा पण्णत्ता तं जहा - एगखुरा दुखुरा गंडीपया सणप्फया जाव जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्ता य अपज्जत्ता य। कठिन शब्दार्थ - एगखुरा - एक खुरा-एक खुर वाले, दुखुरा - द्विखुरा-दो खुर वाले, गंडीपयागण्डीपदा-सुनार की एरण जैसे पैर वाले, सणप्फया - सनखपदा-नख सहित पैरों वाले। भावार्थ - प्रश्न - चतुष्पद स्थलचर सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कितने प्रकार के कहे गये हैं? - उत्तर - चतुष्पद स्थलचर सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक चार प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. एकखुरा २. द्विखुरा ३. गण्डीपदा और ४. सनखपदा। इसी प्रकार के अन्य जितने भी प्राणी हैं वे चतुष्पद स्थलचर सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक हैं। जो संक्षेप से दो प्रकार के कहे गये हैं - पर्याप्तक और अपर्याप्तक। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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