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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - मनुष्य उद्देशक - अकर्म भूमिज और कर्म भूमिज मनुष्य ३४९ ___अकर्म भूमिज और कर्म भूमिज मनुष्य . से किं तं अकम्मभूमगमणुस्सा? अकम्मभूमगमणुस्सा तीसविहा पण्णत्ता, तं जहा - पंचहिं हेमवएहि, एवं जहा पण्णवणापए जाव पंचहिं उत्तरकुरूहिं, सेत्तं अकम्मभूमगा। से किं तं कम्मभूमगा? कम्मभूमगा पण्णरसविहा पण्णत्ता, तं जहा - पंचहिं भरहेहिं पंचहिं एरवएहिं पंचहिं महाविदेहेहिं, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहाआरिया मिलेच्छा, एवं जहा पण्णवणापए जाव सेत्तं आरिया, सेत्तं गब्भवक्कंतिया, सेत्तं मणुस्सा॥११३॥ .. ॥मणुस्सुहेसो समत्तो॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अकर्मभूमिज मनुष्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! अकर्मभूमिज मनुष्य तीस प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - पांच हैमवत, पांच हैरण्यवत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यकवर्ष, पांच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु क्षेत्र में रहने वाले मनुष्य। इस प्रकार प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार समझ लेना चाहिये। यह अकर्मभूमिज मनुष्यों का कथन हुआ। प्रश्न - हे भगवन्! कर्मभूमिज मनुष्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! कर्मभूमिज मनुष्य पन्द्रह प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह के मनुष्य। संक्षेप से वे दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - आर्य और म्लेच्छ। इस प्रकार प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार कह देना चाहिये यावत् यह आर्यों का कथन हुआ। यह गर्भज मनुष्यों का कथन हुआ। इस प्रकार मनुष्यों का वर्णन पूरा हुआ। विवेचन - प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद में वर्णित मनुष्यों के भेदों के अनुसार यहां भी कर्मभूमिज एवं अकर्मभूमिज मनुष्यों का स्वरूप समझ लेना चाहिये। जीवाजीवाभिगम सूत्र भाग १ ॥सम्पूर्ण॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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