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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - प्रथम तिर्यंचयोनिक उद्देशक - खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक २६९ खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक - से किं तं खहयरपंचेदिय तिरिक्खजोणिया ? खयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा सम्मुच्छिम खहर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया गब्भवक्कंतिय खहयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया य । से किं तं समुच्छिम खहयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया ? संमुच्छिम खहयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया दुविहा पपणत्ता, तं जहा - पज्जत्तग संमुच्छिम खहयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया अपज्जत्तग संमुच्छिम खहयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया य, एवं गब्भवक्कंतिया वि भावार्थ - खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक का क्या स्वरूप है ? खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा - सम्मूर्च्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक और गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक । vie 2016 सम्मूर्च्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक का क्या स्वरूप है ? सम्मूर्च्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक और अपर्याप्तक सम्मूर्च्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक। इसी प्रकार में कह देना चाहिये यावत् पर्याप्तक गर्भज खेचर गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक के विषय में कईन्द्रिय तिर्यंचयोनिक। पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक और अपर्याप्तक गर्भज खेचर विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिकों के भेदों का कथन किया गया है। पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं - १. जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यच २ स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच और ३. खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच। जल ही जिन जीवों का निवास स्थान है, जल के अलावा स्थान में जो न ठहर सकते हैं न रह सकते हैं ऐसे मत्स्य, कच्छप आदि जीव जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यवयोनिक हैं। जो जीव स्थल-जमीन पर चलते फिरते हैं वे स्थलचर हैं तथा जो जीव आकाश में चलते फिरते हैं वे खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच हैं। शेष भेद प्रभेद मूलपाठ एवं भावार्थ से स्पष्ट है। खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का योनिसंग्रह खहयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया णं भंते! कविहे जोणिसंगहे पण्णत्ते ? T गोयमा! तिविहे जोणिसंगहे पण्णत्ते, तं जहां अंडया पायया समुच्छिमा । अंडया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - इत्थी पुरिसा णपुंसना । पोयया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा- इत्थी पुरिसा णपुंसगा । तत्थ णं जे ते संमुच्छिमा ते सब्बै पासमा ॥ ९६ ॥ Jain Education International ARI BOLL For Personal & Private Use Only roves प पर्याप्तक सम्मूर्च्छिम www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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