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________________ जीवाजीवाभिगमो सूत्र wो प्रथम शरदकाल समयावस्कावासों के वर्णम में पढमसरयकालीएवं चस्मा निदायकाल' का अर्थ टीका में कार्तिक एवं जेठ मास किया है। किंतु मोकपडिमा के वर्णन में मिपसा एवं आषाढ़ मास रित्याहीयूच्याशुरुदेवाश्री काफिरमानााहै कि यद्यपि प्रसंगोपात उष्णता का वर्णन होनासे) यमदीका का अर्थ मिगसर में ऐसी गर्मी नहीं होने से ठीका जंचता हैं। तथापि ऐसा हो कि सिकाहाथी को अमुक मास में मदायड़ता है। वैसे ही अमुक मास में गर्मी अधिक लगती है। काली विमड़ी वाले पशुओं को ठंडी में भी गर्मी अधिक लगती है। भैंसाठंडामें भी पानी में पड़ी रहती है। अत: मिगसर, आषाढ़ अर्थ भी घस्तिा हो सकता है। यदिाजीवाभिममे ट्रीका का अर्थ म्ठीक हो तो दोनों स्थानों पर विवक्षा से भिन्न भिन्न अर्थ समझना चाहिये। 135 1 YE TE REF कल कानको जाना EM . स माना PETERY सीय वेयणिज्जेसणं भंते! ण या कारसय सीयवयण पच्चणभूखमाणा विहरति काम PEE IT AFFAIRS FEE THE FITS fe जी गोयमा से जहाशामए कम्मारदारए-सिया तरूणे जगवं बलकाजाक सिम्पोवगए एवं महाअयप्रिंङादगवारसमााणं ग्रहाय ताविय ताविय कोट्टिय कोट्टियम्जहणणं एगाह वा दुयाहावा लियाह वा उक्कोसेणं मासं हणेजा, सेण त उसिणं उसिणभूयं अआमरण सदस प'असम्भावपट्टवणाएसायवयाणज जसुणरएसुपाक्खवज्जा, S TUSIE IOS ixion Brand ASTERS सत उम्मासयाणामासयतरण पुणवि पच्चुद्धरिस्सामीति कठ्ठ पविरायमेव.पासेज्जा, तं.चेव णं जावं णो चेव णं संचाएज्जा पुणवि पच्चद्धरित्तए से णं से जहाणामए मुत्तमायंगे तहेव जाव साया सोबत बहुले यावि-विहरेज्जा एवामेव गोयमा! असबभावपट्टवणाए सीयवेयपोहितो णरएहितो कोरइए उन्वट्टिए समाणे जाई-झमाइंइहं माणुस्सलोए। हवंतिका जहाजहिमाणिवाहिमपुंजाणिवा हिमपडलोणिावा हिमपडलपुंजाणिवा तुसाराणि धातुसारपजाणिवा हिमकुंडाणि वा हिमकुंडपुंजाणि वा सीयाणि वा ताई पाई-पोसित्ता ताई ओगाहडाऔगाहिता से ण तत्थ सीर्यपि जापाकर BASE पावणज्जा तण्हाप पावणज्जा खह पिपविणज्जी जरपि पविणज्जा दाहं पिपविणज्जा FISTIU! EK PUFFE TE BEDIT SUIS A PREFE TT 3 DIE SON णिहाएज्ज़, वा पयलाएज्ज वा जाव उसिणे उसिणभए संकसमाणे संकसमाणे सायासोक्खबहुले यावि विहरेजा, गोयमा सीयवेयणिज्जेसु णएस.पोरया एत्तो अणिट्टतरियं चेव सीयवेयणं पच्चणुभवमाणा विहरंति॥८९॥ Lirin f iniATrendrAETE - - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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