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________________ जीवाजीवाभिगम सूत्र इसी प्रकार हेमवत हैरण्यवत आदि अकर्मभूमियों के मनुष्य पुरुषों एवं अंतरद्वीपज मनुष्य पुरुषों का अंतर पूर्व में कहे हुए मनुष्य स्त्रियों के अन्तर के समान समझ लेना चाहिए । मनुष्य पुरुष का अंतर बताने के बाद अब सूत्रकार देव पुरुष का अंतर बताते हैं देव पुरिसाणं जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। भवणवासि देवपुरिसाणं ताव जाव सहस्सारो, जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सकालो । आणयदेवपुरिसाणं भंते! केवइयं कालं अंतरं होइ ? १५०. गोयमा ! जहण्णेणं वासपुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, एवं जाव गेवेज्ज देवपुरिसस्सवि । अणुत्तरोववाइयदेव पुरिसस्स जहण्णेणं वासपुहुत्तं उक्कोसेणं संखिजाई सागरोवमाइं साइरेगाणं ॥ ( अणुत्तराणं अंतरे एक्को आलावओ ? ) ॥ ५५ ॥ भावार्थ - देव पुरुषों का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। इसी प्रकार भवनवासी देवपुरुष से यावत् सहस्रार कल्प के देव पुरुषों तक जघन्य अंतर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का अंतर समझना चाहिये । प्रश्न - हे भगवन् ! आनत कल्प के देव पुरुषों का अंतर कितने काल का कहा गया है। उत्तर - हे गौतम! आनत देव पुरुषों का अंतर जघन्य वर्ष पृथक्त्व और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है। इसी प्रकार यावत् ग्रैवेयक देव पुरुषों तक समझना चाहिये। अनुत्तरौपपातिक देव पुरुषों का अंतर जघन्य वर्ष पृथक्त्व उत्कृष्ट संख्यात सागरोपम से कुछ अधिक का होता है । विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में देव पुरुष का अंतर बताया गया है। सामान्य से देव पुरुष का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का कहा गया है। कोई जीव देव भव से च्यव कर गर्भज मनुष्य में उत्पन्न हुआ और वहाँ पर्याप्ति पूरी होने के बाद तथाविध अध्यवसाय से मर कर पुनः वह देव रूप में उत्पन्न हो सकता है इस अपेक्षा से जघन्य अंतर अंतर्मुहूर्त्त का होता है । उत्कृष्ट अंतर वनस्पतिकाल का है। इसी प्रकार भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और पहले देवलोक से लगा कर आठवें देवलोक तक के देवों का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का कह देना चाहिये । नौवें आनत देवलोक के देवों का अंतर जघन्य वर्ष पृथक्त्व (नौ वर्ष) उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है। क्योंकि आनत आदि देवलोक से च्यव कर कोई जीव यदि पुनः आनत आदि देवलोक में उत्पन्न होगा वह नियम से मनुष्य भव में चारित्र ले कर ही उत्पन्न होगा, बिना चारित्र लिये वह वहाँ उत्पन्न नहीं हो सकता और चारित्र आठ वर्ष से पूर्व नहीं होता अतः जघन्य अन्तर वर्ष पृथक्त्व का कहा गया है। यहाँ पर वर्ष पृथक्त्व का आशय नौ वर्ष के पहले कोई उपक्रम नहीं लगेगा अर्थात् काल नहीं करेगा। इसी प्रकार आगे भी समझना चाहिये। उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का अंतर है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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