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________________ १३८ जीवाजीवाभिगम सूत्र उतनी ज्योतिषी देवियाँ हैं। यह चौथा अल्पबहुत्व हुआ। अब सभी स्त्रियों की अपेक्षा पांचवां अल्पबहुत्व कहते हैं - ___ एयासि णं भंते! तिरिक्खजोणित्थियाणं-जलयरीणं थलयरीणं खहयरीणं, मणुस्सित्थियाणं-कम्मभूमियाणं अकम्मभूमियाणं अंतरदीवियाणं देवित्थियाणं भवणवासिणीणं वाणमंतरीणं जोइसिणीणं वेमाणिणीण य कयरा कयराहिंतो अप्या वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवाओ अंतरदीवग अकम्मभूमग मणुस्सित्थियाओ देवकुरु उत्तरकुरु अकम्मभूमग मणुस्सित्थियाओ दो वि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, हरिवास रम्मगवास अकम्मभूमग मणुस्सित्थियाओ दोऽवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, हेमवएरण्णवय अकम्मभूमग मणुस्सित्थियाओ दोऽवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, भरहेरवय कम्मभूमग मणुस्सित्थियाओ दोऽवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ पव्वविदेह अवरविदेह कम्मभूमग मणुस्सित्थियाओ दोऽवि संखेज्जगुणाओ, वैमाणिय देवित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, भवणवासिदेवित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, खहयरतिरिक्खजोणित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, थलयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ, जलयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ, वाणमंतरदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ, जोइसिय देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ॥५०॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! तिर्यंचयोनिक जलचर स्त्रियों, स्थलचर स्त्रियों, खेचर स्त्रियों, कर्मभूमिज अकर्मभूमिज और अंतरद्वीपज मनुष्य स्त्रियों तथा भवनवासी देवियों, वाणव्यंतर देवियों, ज्योतिषी देवियों और वैमानिक देवियों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़ी अंतरद्वीपज अकर्मभूमि की मनुष्य स्त्रियाँ हैं उनसे देवकुरु उत्तरकुरु की अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियाँ परस्पर तुल्य और संख्यात गुणी, उनसे हरिवर्ष रम्यकवर्ष अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियां परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी, उनसे हैमवत हैरण्यवत अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियां परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी, उनसे भरत ऐरवत कर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियाँ परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी, उनसे पूर्वविदेह पश्चिमविदेह कर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियां परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी, उनसे वैमानिक देवियां असंख्यातगुणी, उनसे भवनवासी देवियां असंख्यातगुणी, उनसे खेचर तिर्यंच स्त्रियां असंख्यातगुणी, उनसे स्थलचर तिर्यंच स्त्रियां संख्यातगुणी, उनसे जलचर तिर्यंच स्त्रियां संख्यातगुणी, उनसे वाणव्यंतर देवियां संख्यातगुणी, उनसे ज्योतिषी देवियां संख्यातगुणी हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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