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________________ द्वितीय प्रतिपत्ति - स्त्रियों की स्थिति . . १२३ ___ सूर्यविमान ज्योतिषी देव स्त्रियों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चौथा भाग और उत्कृष्ट पांच सौ वर्ष अधिक आधा पल्योपम है। ग्रहविमान ज्योतिषी देव स्त्रियों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चौथा भाग और उत्कृष्ट आधा पल्योपम। नक्षत्र विमान ज्योतिषी देव स्त्रियों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चौथा भाग और उत्कृष्ट पल्योपम के चौथे भाग से कुछ अधिक। ... तारा विमान ज्योतिषी देव स्त्रियों की स्थिति जघन्य पल्योपम का आठवां भाग और उत्कृष्ट पल्योपम के आठवें भाग से कुछ अधिक। वेमाणिय देवित्थियाए जहण्णेणं पलिओवमं उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाइं। सोहम्मकप्प वेमाणिय देवित्थीणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? . गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमं उक्कोसेणं सत्तपलिओवमाइं।। ईसाणदेवित्थीणं जहण्णेणं साइरेगं पलिओवमं उक्कोसेणं णवपलिओवमाई ॥४७॥ .. . भावार्थ - वैमानिक देव स्त्रियों की जघन्य स्थिति एक पल्योपम की और उत्कृष्ट स्थिति पचपन पल्योपम की है। प्रश्न - हे भगवन्! सौधर्मकत्य की वैमानिक देव स्त्रियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट सात पल्योपम। ... ईशानकल्प की वैमानिक देवस्त्रियों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम से कुछ अधिक और उत्कृष्ट नौ पल्योपम क़ी है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चारों प्रकार की देवियों की भवस्थिति का कथन किया गया है। सौधर्म कल्प की परिगृहीता देवियों की जघन्य स्थिति एक पल्योपम और उत्कृष्ट स्थिति सात पल्योपम की है। अपरिगृहीता देवियों की जघन्य स्थिति एक -पल्योपम की और उत्कृष्ट स्थिति पचास (५०) पल्योपम की है। ईशानकल्प की परिगृहीता देवियों की स्थिति जघन्य कुछ अधिक एक पल्योपम और उत्कृष्ट नौ पल्योपम की तथा अपरिगृहीता देवियों की जघन्य स्थिति पल्योपम से कुछ अधिक और उत्कृष्ट पचपन (५५) पल्योपम की है। वैमानिक देवियों की स्थिति ओघ रूप से एक पल्योपम की कही गई है. किन्तु सौधर्म ईशान देवलोक की अलग अलग पृच्छा में अपरिगृहीता देवियों की विवक्षा नहीं करते हुए परिगृहीता देवियों की अपेक्षा ही स्थिति बताई है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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