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________________ निवेदन । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पावन प्रवचनों को उनके प्रधान शिष्य गौतम आदि ग्यारह गणधरों ने सूत्र रूप में गून्थन किया है। परिणामस्वरूप आगम दो भागों में विभक्त हुआ है - सूत्रागम और अर्थागम। भगवान् का पावन उपदेश अर्थागम और उसके आधार पर की गई सूत्र रचना सूत्रागम है। भगवान् महावीर स्वामी के कुल ग्यारह गणधर हुए थे। जिनकी नौ वाचनाएं हुईं। वर्तमान में जो आगम उपलब्ध हैं, वह पांचवें गणधर सुधर्मा स्वामी की वाचना है। स्थानकवासी परम्परा में वर्तमान में जिन बत्तीस आगमों को मान्यता दी गई है वह वर्गीकरण की अपेक्षा चार भागों में विभक्त हैं। यथा - ग्यारह अंग, बारह उपांग, चार मूल, चार छेद सूत्र और बत्तीसवां आवश्यक सूत्र। प्रस्तुत सूत्र नवां अंग सूत्र है। जो अनुत्तरोपपातिक दशा के नाम से प्रसिद्ध है। अनुत्तरोपपातिकदशा तीन शब्दों से बना है। अनुत्तर+उपपात+दशा जिसका आशय है अनुत्तर अर्थात् श्रेष्ठ अनुत्तर विमान, उपपात अर्थात् उत्पन्न होना। इस सूत्र के तीन वर्ग हैं उसके प्रथम एवं तृतीय वर्ग के दस-दस अध्ययन हैं जो दशा के सूचक हैं। इस प्रकार जिन साधकों ने अपनी उत्कृष्ट तप संयम की साधना के आधार से यहाँ का आयुष्य पूर्ण कर अनुत्तर विमानों में जन्म लिया। वहाँ का आयुष्य पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धि मति को प्राप्त करेंगे। उनका वर्णन इस सूत्र में है। . प्रस्तुत सूत्र में तीन वर्ग में कुल तेतीस महापुरुषों का वर्णन है। प्रथम के दो वर्गों में महाराजा श्रेणिक के तेवीस पुत्रों का एवं तीसरे वर्ग में १. धन्यकुमार २. सुनक्षत्र ३. ऋषिदत्त ४. पेल्लक ५. रामपुत्र ६. चन्द्रिक ७. पृष्टिमातृक ८. पेढालपुत्र ६. पोटिल्ल और १०. वेहल्ल का वर्णन है। सम्राट श्रेणिक मगध साम्राज्य का अधिपति था, जो अपने समय का महान् पराक्रमी राजा और श्रमण भगवान् स्वामी का अनन्य उपासक था। जैन साहित्य में महाराजा श्रेणिक के कुल छत्तीस पुत्रों का उल्लेख मिलता है। जो इस प्रकार हैं - १. जाली २. मयाली ३. उवयाली ४. पुरिमसेण ५. वारिसेण ६. दीहदन्त ७. लहदंत ८. वेहल्ल. ६. वेहायस १०. अभयकुमार' ११. दीहसेण १२. महासेण १३. लकृदन्त १४. गूढदन्त १५. शुद्धदन्त १६. हल १७. दुम १८. दुमसेण १९. महादुमसेण २०. सीह २१. सीहसेण २२. महासीहसेण २३. पुण्णसेण २४. कालकुमार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004192
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages86
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuttaropapatikdasha
File Size12 MB
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