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________________ ७९ 1000000 600000000 का विषय, घ्राणेन्द्रिय का विषय, रसनेन्द्रिय का विषय और स्पर्शनेन्द्रिय का विषय । पांच मुण्ड कहे गये हैं यथा - श्रोत्रेन्द्रिय मुण्ड यानी श्रोत्रेन्द्रिय के विषय को जीतने वाला यावत् स्पर्शनेन्द्रिय मुण्ड यानी स्पर्शनेन्द्रिय को जीतने वाला । अथवा दूसरी तरह पांच मुण्ड कहे गये हैं यथा - क्रोधमुण्ड यानी क्रोध को जीतने वाला, मानमुण्ड यानी मान को जीतने वाला, माया मुण्ड यानी माया को जीतने वाला, लोभमुण्ड - लोभ को जीतने वाला और शिरमुण्ड यानी मस्तक का मुण्डन कराने वाला । अधोलोक में पांच बादर कहे गये हैं यथा- पृथ्वीकाय, अप्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और उदार यानी स्थूल त्रस प्राणी यानी बेइन्द्रियादि । इसी प्रकार ऊर्ध्व लोक में भी ये ही पांच बादर कहे गये हैं । तिर्यक् लोक में पांच बादर कहे गये हैं यथा एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय | पांच प्रकार के बादर तेउकाय कही गई है यथा - अंगारा, ज्वाला, मुर्मुर यानी अग्नि के छोटे कण, अर्चि यानी ऐसी ज्वाला जिसमें लपट उठती हों और अलात उल्मुक । पांच प्रकार की बादर वायुकाय कही गई है यथा- पूर्व दिशा की वायु, पश्चिम दिशा की वायु, दक्षिण दिशा की वायु, उत्तर दिशा की वायु और विदिशा की वायु । पांच प्रकार की अचित्त वायुकाय कही गई है यथा आक्रान्त यानी पृथ्वी पर पैर रखने से जो वायु उठती है वह, लोहार की धमण से उठने वाली वायु, गीले वस्त्र को निचोड़ने से उठने वाली वायु, शरीर से पैदा होने वाली वायु और सम्मूर्च्छिम यानी पंखे आदि से पैदा होने वाली वायु । यह अचित्त वायु सचित्त वायु की हिंसा करती है । विवेचन मुण्ड मुण्डन शब्द का अर्थ अपनयन अर्थात् हटाना, दूर करना है। यह मुण्डन द्रव्य और भाव से दो प्रकार का है। शिर से बालों- केशों को अलग करना द्रव्य मुण्डन है और मन से इन्द्रियों के विषय शब्द, रूप, रस और गन्ध, स्पर्श सम्बन्धी राग द्वेष और कषायों को दूर करना भाव मुण्डन है। इस प्रकार द्रव्य मुण्डन और भाव मुण्डन धर्म से युक्त पुरुष मुण्ड कहा जाता है। पाँच मुण्ड - १. श्रोत्रेन्द्रिय मुण्ड २. चक्षुरिन्द्रिय मुण्ड ३. घ्राणेन्द्रिय मुण्ड ४. रसनेन्द्रिय मुण्ड ५. स्पर्शनेन्द्रिय मुण्ड । डु १. श्रोत्रेन्द्रिय मुण्ड - श्रोत्रेन्द्रिय के विषय रूप मनोज्ञ एवं अमनोज्ञ शब्दों में राग द्वेष को • हटाने वाला पुरुष श्रोत्रेन्द्रिय मुण्ड कहा जाता है। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय मुण्ड आदि का स्वरूप भी समझना चाहिये। ये पाँचों भाव मुण्ड हैं। चाँच प्रकार के मुण्ड - १. क्रोध मुण्ड २. मान मुण्ड ३. माया मुण्ड ४ लोभ मुण्ड ५. शिर मुण्ड । मन से क्रोध, मान, माया और लोभ को हटाने वाले पुरुष क्रमशः क्रोध मुण्ड, मान मुण्ड, माया मुण्ड और लोभ मुण्ड हैं। शिर से केश अलग करने वाला पुरुष शिर मुण्ड है। - Jain Education International स्थान ५ उद्देशक ३ ००००००० - = इन पाँचों में शिर मुण्ड द्रव्य मुण्ड है और शेष चार भाव मुण्ड हैं। पाँच प्रकार की अचित्त वायु - १. आक्रान्त २. ध्मात ३. पीड़ित ४. शरीरानुगत ५. सम्मूर्च्छिम | For Personal & Private Use Only - www.jalnelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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