SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४० श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 अन्तगडदसांग, अनुत्तरौपपातिक-अणुत्तरोववाई, प्रश्न व्याकरण, विपाकसूत्र, दृष्टिवाद। ४. चौथे स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सर्वरत्नमय एक महान् मालायुगल यानी दो मालाओं को देखा। इसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने केवलज्ञानी होकर अगार धर्म-श्रावकधर्म और अनगार धर्म-साधुधर्म यह दो प्रकार का धर्म फरमाया। ५. पांचवें स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सफेद गायों के झुण्ड को देखा। इसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चार प्रकार का संघ हुआ। ६. छठे स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने चारों तरफ से खिले हुए फूलों वाले एक विशाल पद्म सरोवर को देखा। इसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक इन चार प्रकार के देवों का कथन किया। ७. सातवें स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी हजारों लहरों और कल्लोलों से युक्त महासागर को भुजाओं से तैर कर पार पहुंचे । इसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी चार गति का अन्त करके अनादि और अनन्त संसार समुद्र को पार कर मोक्ष को प्राप्त हुए । ८. आठवें स्वप्न में श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने तेज से जाज्वल्यमान - तेजस्वी सर्य को देखा । इसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने निर्व्याघात, निरावरण, सम्पूर्ण, प्रतिपूर्ण, प्रधान, अनन्त, केवलज्ञान केवलदर्शन को प्राप्त किया। ९. नवमें स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने नील वैडूर्यमणि के समान अपने अन्तरभाग से मानुष्योत्तर पर्वत को चारों तरफ से आवेष्टित परिवेष्टित देखा। इसका फल यह है कि देवलोक, मनुष्यलोक और असुरलोक इन तीनों लोकों में ये केवलज्ञान और केवलदर्शन के धारक श्रमण भगवान् महावीर स्वामी है' इस तरह की उदार कीर्ति, स्तुति, सन्मान और यश को प्राप्त हुए। १०. दसवें स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अपने आप को सुमेरु पर्वत की मंदर चूलिका के ऊपर श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठे हुए देखा। इसका फल यह है कि श्रमण भगवान्महावीरस्वामी ने वैमानिक और ज्योतिषी देव, मनुष्य और असुर यानी भवनपति और वाणव्यन्तर देवों से युक्त परिषद् में विराज कर केवलिप्ररूपित धर्म फरमाया एवं भली प्रकार प्रतिपादन किया। विवेचन - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने ये दस स्वप्न किस रात्रि में देखे थे? इस विषय में कुछ की ऐसी मान्यता है कि 'अंतिम राइयंसि' अर्थात् छद्मस्थ अवस्था की अन्तिम रात्रि में ये स्वप्न देखे थे अर्थात् जिस रात्रि में स्वप्न देखे उसके दूसरे दिन ही भगवान् को केवलज्ञान उत्पन्न हो गया था । कुछ का कथन है कि 'अंतिम राइयंसि' अर्थात् 'रात्रि के अन्तिम भाग में' । यहाँ पर किसी रात्रि विशेष का निर्देश नहीं किया गया है । इससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि स्वप्न देखने के कितने समय बाद भगवान् को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था । इस विषय में भिन्न भिन्न प्रतियों में जो अर्थ दिये गये हैं वे ज्यों के त्यों यहां उद्धृत किये जाते हैं - 'समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिम राइयंसि इमे दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धे' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy