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________________ स्थान १० ३०५ कहे गये हैं और ऊपर एक हजार योजन के चौडे कहे गये हैं । अर्द्धपुष्करवर द्वीप के मेरुपर्वतों का वर्णन भी इसी प्रकार है। . सब यानी बीस वृत्त (गोल) वैताढ्य पर्वत एक हजार योजन के ऊंचे हैं, एक हजार गाउ यानी कोस के ऊंडे हैं, सब जगह समान परिमाण वाले हैं, पर्यक संस्थान वाले हैं और एक हजार योजन के चौड़े कहे गये हैं। जम्बूद्वीप में दस क्षेत्र कहे गये हैं उनके नाम इस प्रकार हैं - भरत, एरवत, हेमवय, हिरण्णवय, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष, पूर्वविदेह, अपर विदेह यानी पश्चिम विदेह, देवकुरु, उत्तरकुरु। मानुष्योत्तर पर्वत मूल भाग में दस सौ बाईस (एक हजार बाईस) योजन चौड़ा कहा गया है। सब यानी चारों अंजन पर्वत एक हजार योजन ऊंडे हैं, मूल भाग में दस हजार योजन चौड़े हैं और ऊपर एक हजार योजन चौड़े हैं। सब यानी सोलह दधिमुख पर्वत एक हजार योजन ऊंडे हैं। ये सब जगह समान परिमाण वाले हैं। वे पाला के आकार संस्थान वाले हैं और दस हजार योजन के चौड़े कह गये हैं । सब यानी चार रतिकर पर्वत एक हजार योजन के ऊंचे हैं और एक हजार गाउ यानी कोस के ऊंडे हैं वे सब जगह समान परिमाण वाले हैं। वे झालर के आकार संस्थान वाले हैं और एक हजार योजन के चौड़े कहे गये हैं। रुचकवर पर्वत एक हजार योजन ऊंडा है। मूल भाग में दस हजार योजन चौड़ा है और ऊपर एक हजार योजन का चौड़ा है। इसी तरह रूचकवर पर्वत के समान ही कुण्डलवर पर्वत का वर्णन भी जानना चाहिए। विवेचन - दिशाएं दस हैं। उनके नाम - १. पूर्व २. दक्षिण ३. पश्चिम ४. उत्तर। ये चार मुख्य दिशाएं हैं। इन चार दिशाओं के अन्तराल में चार विदिशाएं हैं। यथा - ५. आग्नेयकोण ६. नैऋत्य कोण ७. वायव्य कोण ८. ईशान कोण ९. ऊर्ध्व दिशा १०, अधो दिशा। जिधर सूर्य उदय होता है वह पूर्व दिशा है। जिधर सूर्य अस्त होता है वह पश्चिम दिशा है। सूर्योदय की तरफ मुंह करके खड़े हुए पुरुष के सन्मुख पूर्व दिशा है। उसके पीठ पीछे की पश्चिम दिशा है। उस पुरुष के दाहिने हाथ की तरफ दक्षिण दिशा और बाएं हाथ की तरफ उत्तर दिशा है। पूर्व और दक्षिण के बीच की आग्नेय कोण, दक्षिण और पश्चिम के बीच की नैऋत्य कोण, पश्चिम और उत्तर दिशा के बीच की वायव्य कोण, उत्तर और पूर्व दिशा के बीच की ईशान कोण कहलाती है। ऊपर की दिशा ऊर्ध्व दिशा और नीचे की दिशा अधो दिशा कहलाती है। - इन दस दिशाओं के गुण निष्पन्न नाम ये हैं - . १. ऐन्द्री २. आग्नेयी ३. याम्या ४. नैर्ऋती ५. वारुणी ६. वायव्य ७. सौम्या ८. ऐशानी ९. विमला १०. तमा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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