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________________ स्थान ९ ३. सुदक्खु जागरिया (सुदृष्टिजागरिका) - जीव, अजीव आदि तत्त्वों के जानकार श्रमणोपासक सुदृष्टि (सुदर्शन) जागरिका किया करते हैं। इसके बाद शंख श्रमणोपासक ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से क्रोध आदि चारों कषायों के फल पूछे। भगवान् ने फरमाया- क्रोध करने से जीव लम्बे काल के लिए अशुभ गति का बन्ध करता है । कठोर तथा चिकने कर्म बांधता है। इसी प्रकार मान, माया और लोभ से भी भयंकर दुर्गति का बन्ध होता है। भगवान् से क्रोध के तीव्र तथा कटुफल को जानकर सभी श्रावक कर्मबन्ध से डरते हुए संसार से उद्विग्न होते हुए शंखजी के पास आए। बार बार उनसे क्षमा मांगी। इस प्रकार खमत खामणा करके वे सब अपने अपने घर चले गए। - श्री गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान् ने फरमाया शंख श्रावक मेरे पास चारित्र अंगीकार नहीं करेगा। वह बहुत वर्षों तक श्रावक के व्रतों का पालन करेगा। शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, पौषध, उपवास आदि विविध तपस्याओं को करता हुआ अपनी आत्मा को निर्मल बनाएगा। अन्त में एक मास का संथारा करके सौधर्म कल्प में चार पल्योपम की स्थिति वाला देव होगा । यह शंख श्रावक और पुष्कली श्रावक तो महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष जाएंगे। इसलिए तीर्थंकर गोत्र बांधने वाले शंख और पुष्कली कोई दूसरे हैं। (भगवती श० १२ उ० १ ) ८. सुलसा - प्रसेनजित राजा के नाग नामक सारथि की पत्नी । इसका चरित्र नीचे लिखे अनुसार है - एक दिन सुलसा का पति पुत्रप्राप्ति के लिए इन्द्र की आराधना कर रहा था। सुलसा ने यह देख कर कहा - दूसरा विवाह करलो । सारथि ने, 'मुझे तुम्हारा पुत्र ही चाहिए' यह कह कर उसकी बात अस्वीकार कर दी। एक दिन स्वर्ग में इन्द्र द्वारा सुलसा के दृढ़ सम्यक्त्व की प्रशंसा सुन कर एक देव ने परीक्षा लेने की ठानी। साधु का रूप बना कर सुलसा के घर आया। सुलसा ने कहा- 'पधारिये महाराज ! क्या आज्ञा है ?' देव बोला- 'तुम्हारे घर में लक्षपाक तेल है। मुझे किसी वैद्य ने बताया है, उसे दे दो ।' 'लाती हूँ' यह कह कर वह कोठार में गई। जैसे ही वह तेल को उतारने लगी देव ने अपने प्रभाव से बोतल (भाजन) फोड़ डाली। इसी प्रकार दूसरी और तीसरी बोतल भी फोड डाली। सुलसा वैसे ही शान्तचित्त खड़ी रही। देव उसकी दृढ़ता को देख कर प्रसन्न हुआ। उसने सुलसा को बत्तीस गोलियाँ दी और कहा एक एक खाने से तुम्हारे बत्तीस पुत्र होंगे। कोई दूसरा काम पड़े तो मुझे अवश्य याद करना। मैं उपस्थित हो जाऊँगा। यह कह कर वह चला गया। २७३ Jain Education International - 'इन सभी से मुझे एक ही पुत्र हो' यह सोच कर उसने सभी गोलियाँ एक साथ खाली । उसके पेट में बत्तीस पुत्र आगये और कष्ट होने लगा। देव का ध्यान किया। देव ने उन पुत्रों को लक्षण के रूप में बदल दिया । यथासमय सुलसा के बत्तीस लक्षणों वाला पुत्र उत्पन्न हुआ। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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