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________________ स्थान ९ २७१ इसके बाद शंख ने मन में सोचा - 'अशनादि का आहार करते हुए पाक्षिक पौषध का आराधन करना मेरे लिए श्रेयस्कर नहीं है। मुझे तो अपनी पौषधशाला में मणि और सुवर्ण का त्याग करके, माला, उद्वर्तन (मसी आदि लगाना) और विलेपन आदि छोड़कर शस्त्र और मूसल आदि का त्याग कर, दर्भ का संथारा (बिस्तर) बिछाकर, अकेले बिना किसी दूसरे की सहायता के पौषध की आराधना करनी चाहिए।' यह सोच कर वह घर आया और अपनी स्त्री के सामने अपने विचार प्रकट किये। फिर पौषधशाला में जाकर विधिपूर्वक पौषध ग्रहण करके बैठ गया। दूसरे श्रावकों ने अपने अपने घर जाकर अशन आदि तैयार कराए। एक दूसरे को बुलाकर कहने लगे - हे देवानुप्रियो ! हमने पर्याप्त अशनादि तैयार करवा लिये हैं, किन्तु शंखजी श्रावक अभी तक नहीं आए। इसलिए उन्हें बुला लेना चाहिये। ___ इस पर पोखली श्रमणोपासक बोला - 'देवानुप्रियो ! आप लोग चिन्ता मत कीजिए। मैं स्वयं जाकर शंखजी श्रावक को बुला लाता हूँ' यह कह कर वह वहां से निकला और श्रावस्ती के बीच से होता हुआ शंख श्रमणोपासक के घर जाने लगा। अपने घर की ओर आते हुए पोखली श्रमणोपासक को देखकर उत्पला श्रमणोपासिका बहुत प्रसन्न हुई। अपने आसन से उठकर सात आठ कदम उनके सामने गई। पोखली श्रावक को वन्दना · नमस्कार किया। उन्हें आसन पर बैठने के लिये उपनिमन्त्रित किया। श्रावक के बैठ जाने पर उसने विनय पूर्वक कहा - हे देवानुप्रिय ! कहिए ! आपके पधारने का क्या प्रयोजन है ? पोखली श्रावक ने पूछा - देवानुप्रिये ! शंख. श्रमणोपासक कहाँ हैं ? उत्पला ने उत्तर दिया - शंख श्रमणोपासक तो पौषधशाला में पौषध करके ब्रह्मचर्य आदि व्रत ले कर धर्म का आराधन कर रहे हैं। पोख़ली श्रमणोपासक पौषधशाला में शंख के पास आए। वहाँ आकर गमनागमन (ईर्यावहि) का प्रतिक्रमण किया। इसके बाद शंख श्रमणोपासक को वन्दना नमस्कार करके बोला, हे देवानुप्रिय ! आपने जैसा कहा था, पर्याप्त अशन आदि तैयार करवा लिये गए हैं। हे देवानुप्रिय ! आइये ! वहाँ चलें और आहार करके पाक्षिक पौषध की आराधना तथा धर्म जागृति करें। इसके बाद शंख ने पोखली से कहा - हे देवानुप्रिय ! मैंने पौषधशाला में पौषध ले लिया है। अतः मुझे अशनादि का सेवन करना नहीं कल्पता। मुझे तो विधिपूर्वक पौषध का पालन करना चाहिए। आप लोग अपनी इच्छानुसार उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम चारों प्रकार के आहार का सेवन करते हुए धर्म की जागरणा कीजिए। इसके बाद पोखली पौषधशाला से बाहर निकला। नगरी के बीच से होता हुआ श्रावकों के पास आया। उसने कहा - हे देवानुप्रियो ! शंखजी श्रावक तो पौषधशाला में पौषध लेकर धर्म की आराधना कर रहे हैं। वे अशन आदि का सेवन नहीं करेंगे। इसलिए आप लोग यथेच्छ आहार करते हुए धर्म की आराधना कीजिए। श्रावकों ने वैसा ही किया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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