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________________ स्थान ९ नये ग्रामों का बसाना, पुराने ग्रामों को व्यवस्थित करना, आकर यानी नमक आदि की खानों का प्रबन्ध, नगर, पत्तन अर्थात् बन्दरगाह और द्रोणमुख - जहाँ जल और स्थल दोनों तरह का मार्ग हो, मंडव यानी ऐसा जंगल जहाँ नजदीक बस्ती न हो, स्कन्धावार अर्थात् सेना का पडाव और घर इत्यादि वस्तुओं का प्रबन्ध नैसर्प निधि के द्वारा होता है ॥ २ ॥ गणित यानी सोना चांदी के सिक्के, मोहर आदि गिनी जाने वाली वस्तुएं और इन वस्तुओं को उत्पन्न करने वाली सामग्री और मान यानी जिनका माप कर व्यवहार होता है ऐसे धान आदि उन्मान अर्थात् तोली जाने वाली वस्तुएं गुड़ खांड आदि तथा धान्य एवं बीजों की उत्पत्ति आदि का सारा काम पाण्डुक निधि द्वारा होता है ऐसा तीर्थङ्कर भगवान् ने फरमाया है ॥ ३ ॥ स्त्री पुरुष हाथी और घोड़े इन सब के आभूषणों एवं अलङ्कारों का प्रबन्ध पिङ्गलक निधि द्वारा होता है ॥ ४ ॥ २५९ 1000 चक्रवर्ती के चौदह प्रधानरत्न अर्थात् चक्र आदि सात एकेन्द्रिय रत्न और सेनापति आदि सात पञ्चेन्द्रिय रत्न ये सब चौदह रत्न सर्वरत्न नामक निधि के द्वारा उत्पन्न होते हैं ॥ ५ ॥ रंगीन और सफेद सब प्रकार के वस्त्रों की उत्पत्ति और निष्पत्ति यानी सिद्धि ये सब महापद्म निधि के द्वारा होता है ॥ ६ ॥ भविष्यत् काल के तीन वर्ष, भूतकाल के तीन वर्ष और वर्तमान इन तीनों कालों का ज्ञान और शिल्पशत यानी घट, लोह, चित्र, वस्त्र, नापित इनमें प्रत्येक के बीस बीस भेद होने से सौ प्रकार का शिल्प तथा कृषि, वाणिज्य आदि कर्म कालनिधि द्वारा होते हैं । कालज्ञान, शिल्प और कर्म ये तीनों बातें प्रजा के हित के लिए होती हैं ॥ ७ ॥ खानों से सोना, चांदी, लोहा आदि धातुओं की उत्पत्ति और चन्द्रकान्त आदि मणियाँ, मोती, स्फटिक मणि की शिलाएं और मूंगे आदि को इकट्ठा करने का काम महाकालनिधि द्वारा होता है ॥ ८ ॥ . शूरवीर योद्धाओं को इकट्ठा करना, कवच आदि बनाना, और हथियार तैयार करना तथा युद्धनीति यानी व्यूह रचना आदि और साम, दाम, दण्ड, भेद यह चार प्रकार की दण्डनीति, इन सब की व्यवस्था माणवक निधि द्वारा होती है ।। ९ ॥ Jain Education International नाच तथा उसके सब भेद नाटक और उसके सब भेद और चतुर्विध काव्य अर्थात् धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चतुर्विध पुरुषार्थ का साधक अथवा संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, सङ्कीर्ण इन चार भाषाओं में बना हुआ अथवा समछन्द, विषम छन्द, अर्द्धसम छन्द और गदय इस चार प्रकार के अथवा गदय, पदय, गेय और वर्णपदबद्ध इस चार प्रकार के काव्य की उत्पत्ति और सब प्रकार के बाजों की उत्पत्ति शंख नामक महानिधि द्वारा होती है ।॥ १०॥ ये महानिधियाँ आठ चक्रों पर प्रतिष्ठित हैं । इनकी ऊंचाई आठ योजन और चौड़ाई नौ योजन For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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